गुरुवार, 7 नवंबर 2024
खग्रास चंद्रग्रहण (7 सितंबर2025)
श्री संवत 2082 सन 2025 में लगने वाला साल का पहला चंद्रग्रहण
यह चंद्रग्रहण भाद्रपद पूर्णिमा तिथि रविवार 7 सितंबर 2025 को लगने वाला खग्रास चंद्र ग्रहण है । यह ग्रहण भारत मैं दिखाई देगा ।
यह चंद्रग्रहण भारत के सभी भागों में दिखाई देगा । शुरू से लेकर अंतिम तक या ग्रहण दिखाई देगा
ग्रहण समय--
भारत में यह ग्रहण भारतीय समय के अनुसार ग्रहण का प्रारंभ रात्रि 9:57 पर शुरू होगा।
ग्रहण मध्य, मध्य रात्रि 11:41 पर
ग्रहण मोक्ष रात्रि 1:27 पर होगा ग्रहण का स्पर्श ,मध्य, मोक्ष पूरे भारत में दिखाई देगा ।
ग्रहण फल--
यह ग्रहण मिथुन ,कर्क ,सिंह ,तुला ,वृश्चिक ,मकर ,कुंभ ,मीन राशि वालों के लिए कष्टकारी होने वाला है।
ग्रहण सवधानी --
जिन राशियों के लिए ग्रहण भारी होने वाला है उन्हें चंद्र ग्रहण का दर्शन नहीं करना चहिए ।
जो बहने पेट से हैं उन्हें भी यह ग्रहण का दर्शन नहीं करना चाहिए ।
ग्रहण काल मे भोजन पानी का निषेध करें ।
ग्रहण काल मे हरिनाम संकीर्तन करें ।
जप दान करें।
गंगा स्नान करें ।
विशेष --
ग्रहण काल में किया गया जब और दान अक्षय पुण्य देने वाला सिद्धि देने वाला होता है।
शनिवार, 26 अक्टूबर 2024
दीपावाली निर्णय - 2024
🚩दीपावली - निर्णय 🚩
पद्मानने_पद्मिनि_पद्मपत्रे_पद्मप्रिये_पद्मदलायताक्षि।
विश्वप्रिये_विश्वमनोऽनुकूले_त्वत्पादपद्मं_मयि_सन्निधत्स्व ।।
दीपावली दीपों का मुख्य त्योहार है । दीप माला का पूजन होता है । दीपावाली पर निशा काल में अमावस्या का महत्व लक्ष्मी पूजा से होता है । यह अमावस्या साधक विद्वान तंत्र मंत्र पूजा पाठ करने वालों के लिए विशेष महत्व रखता है ।
कार्तिक अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर 2024, गुरुवार को 03 बजकर 12 मिनट के बाद से शुरू होकर अगले दिन 01 नवंबर 2024 शुक्रवार को 5 बजकर 13 बजे तक अमावस्या रहेगी।
श्री काशी विश्वनाथ ऋषिकेश पंचांग के तद्नुसार।
अमावस्या की रात की बात हुई तो ये 31 अक्टूबर को ही मिल रही है।
इस हिसाब से दीपावली 31 अक्टूबर के दिन ही मनाई जाएगी।
लक्ष्मी पूजा संध्या व रात्रि वेला के वृष , सिंह , कुंभ लग्न के समय में मनाई जाती है ।
काशी के विद्वानों ने भी इसी मुहूर्त को शास्त्र सम्मत माना है ।
🚩लक्ष्मी पूजन मुहूर्त -
1- वृषभ राशि स्थिर लग्न समय - 06:23 सायं से 08:19 रात्रि तक रहेगा ।
2- सिंह राशि स्थिर लग्न समय मध्यरात्रि - 12:51 से 03:05 तक है ।
🚩चौघड़िया -
शुभ- 04:39 pm से 06:04 pm
अमृत - 06:04 pm से 07:39 pm
लाभ - 12:22 am से 01:57 am अंग्रेजी 1 नवंबर
🚩सत्य सनातन धर्म की जय🚩
सोमवार, 16 सितंबर 2024
चंद्र ग्रहण व सूर्यग्रहण पर निर्णय2024-25
श्री संवत 2081 में चार ग्रहण लगने वाले हैं। जिसमें दो चंद्र ग्रहण व दो सूर्यग्रहण है । किंतु भारत वर्ष में कोई भी ग्रहण दृश्य नहीं होगा।
1- पहला ग्रहण चंद्रग्रहण जो पूर्णिमा बुधवार 18 सितंबर 2024 को लगने वाला खंड चंद्रग्रहण भारत में दृश्य नहीं होगा । यह ग्रहण का समय भारतीय मानक समय के अनुसार ग्रहण का प्रारंभ 7:42 AM वह मोक्ष 8: 47 AM पर होगा ।
2- दूसरा सूर्य ग्रहण आश्विन कृष्णपक्ष 2 अक्टूबर2024 को लगने वाला कंकणाकृति ग्रहण पूरे भारत में दृश्य नहीं होगा। ग्रहण का प्रारंभ भारतीय समय के अनुसार रात्रि 9:13 PM पर तथा मोक्ष 3:17 AM पर होगा।
3- तीसरा ग्रहण चंद्रग्रहण जो फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि 14 मार्च 2025 को लगने वाला खग्रास चंद्रग्रहण है। जो भारत में दृश्य नहीं होगा । ग्रहण का प्रारंभ भारतीय समय 10:39 PM पर तथा मोक्ष 2:18 AM पर होगा।
4- चौथा ग्रहण सूर्यग्रहण चैत्र अमावस्या शनिवार 29 मार्च 2025 को लगने वाला खंड सूर्य ग्रहण भारत में दृश्य नहीं होगा। ग्रहण का समय भारतीय समयानुसार 2:21 PM तथा मोक्ष 6:14 PM सायं पर होगा।
सोमवार, 26 अगस्त 2024
श्री राधा कृष्ण मंदिर बसई स्याल्दे अल्मोड़ा
।।श्रीराधा कृष्ण मंदिर बसई का इतिहास ।।
वसुदेव सुतं देवं , कंस चाणूर मर्दनं।
देवकी परमानन्दं ,कृष्णं वन्दे जगदगुरूम्।।
श्री कृष्ण गोबिन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव।
हे नाथ नारायण वासुदेव हे नाथ नारायण वासुदेव ।।
श्री राधा कृष्ण मंदिर बसई का निर्माण सन १९५० दशक के आस पास बताया जाता है । इस का निर्माण बसई ग्राम सभा के मूलनिवासी स्वर्गीय श्रीमान भवान सिंह मेहरा जी के कर कमलों द्वारा मंदिर निर्माण व मूर्ति प्रतिष्ठा किया गया ।
जिसका देखरेख पूजा पाठ बसई ग्राम सभा के लोगों द्वारा संचालित किया जाता था । कालांतर में कुछ लोगों द्वारा प्राचीन श्री राधा कृष्ण मंदिर को तोड़कर नया मंदिर बनाया गया ।
प्राचीन धरोहर श्रीराधा कृष्ण मंदिर बसई के सारे साक्ष्य हटा दिए गए ।पुराने मंदिर पर कुछ शिलालेख थे । जो आज कही दिखाई नही देते। जिससे जन मानुष में काफी आक्रोश देखने को मिला ।
सन १९९४ के दशक में श्री राधा कृष्ण मंदिर का निर्माण पुनः किया गया । जिसमे ग्राम सभा बसई व समस्त क्षेत्र वासियों का योगदान सराहनीय है।
नए मंदिर में श्रीमान गोविंद वल्लभ लखेड़ा जी के द्वारा माता पिता की याद में श्री राधा कृष्ण भगवान की मूर्ति स्थापित कि गई।
यह श्री राधा कृष्ण मंदिर सभी मानव समाज के कल्याण हेतु समर्पित है ।
।।जय श्री राधे कृष्णा।।
शनिवार, 27 जुलाई 2024
ब्राह्मण कौन है ।
।। ब्राह्मण कौन है ।।
ब्राह्मण जो ब्रह्म का ज्ञान रखता है । वह ब्राह्मण है ।
जो सृष्टि का ज्ञान रखता है । वह ब्राह्मण है ।
जो वेदों का ज्ञान रखता है । वह ब्राह्मण है ।
जो पुराणों का ज्ञान रखता है। वह ब्रह्मण है।
जो नियमों पर चलता है । वह ब्राह्मण है ।
जिसके पास ज्ञान का भंडार है । वह ब्राह्मण है ।
जो समाज को ज्ञान देने का काम करता है । वह ब्राह्मण है ।
जो समाज को जीने की कला सिखाता है। वह ब्राह्मण है ।
जो गुरु परंपरा पर चलता है । वह ब्राह्मण है ।
वेद, पुराण उपनिषद ,ज्योतिष वास्तु आयुर्वेद सनातन संस्कृति संस्कारों की रक्षा करने वाला,वह है ब्राह्मण ।
अपनी परम्पराओं ज्ञान देना वाला है । ब्राह्मण।
जिससे देवता भी डरते है । वह है ब्राह्मण ।
सनातन को जिंदा रखने वाला वह ब्राह्मण है ।
नाम सुनकर ऐसा लगता है जैसे कोई दीनहीन होगा । लोगों की भावना ब्राह्मण नाम सुनकर परिवर्तित हो जाती है । कई लोग तो आदर करते हैं, और कई लोग तिरस्कार भी करते हैं।
पृथ्वी में जितने भी तीर्थ पवित्र नदियां है , वे सभी समुद्र में मिलते है । और समुद्र के सारे तीर्थ ब्राह्मण के दाहिने पैर में बसते है ।
देवाधीनं जगत्सर्वं मंत्राधीनाश्च देवता:।
तेमंत्रा: ब्राह्मणाधिना: तस्मात् ब्राह्मण देवता: । ।
सारा संसार देवताओं के अधीन है । और देवता मन्त्रों के अधीन है । मंत्र ब्राह्मण के अधीन है । इस लिए इस वसुंधरा के ब्राह्मण ही देवता है ।
ब्राह्मण कि यारी ,शेर की सवारी
जिसने ब्राह्मण को मित्र बना लिया समझो उसने शेर कि सवारी कर ली ।
जय ब्राह्मण देवता ।
शुक्रवार, 26 जुलाई 2024
रुद्राभिषेक व शिवपूजन पदार्थ जिससे अनिष्ट का नाश होता है
शिवलिंग पर अक्सर जल और बिल्वपत्र तो चढ़ाया ही जाता है लेकिन इसके अलावा भी बहुत कुछ अर्पित किया जाता है। शिवजी का कई प्रकार के द्रव्यों से अभिषेक किया जाता है। सभी तरह के अभिषेक का अलग-अलग फल दिया गया है। शिव पुराण के अनुसार किस द्रव्य से अभिषेक करने से क्या फल मिलता है? जानिए-
श्लोक :-
जलेन वृष्टिमाप्नोति व्याधिशांत्यै कुशोदकै।
दध्ना च पशुकामाय श्रिया इक्षुरसेन वै।।
मध्वाज्येन धनार्थी स्यान्मुमुक्षुस्तीर्थवारिणा।
पुत्रार्थी पुत्रमाप्नोति पयसा चाभिषेचनात।।
बन्ध्या वा काकबंध्या वा मृतवत्सा यांगना।
ज्वरप्रकोपशांत्यर्थम् जलधारा शिवप्रिया।।
घृतधारा शिवे कार्या यावन्मन्त्रसहस्त्रकम्।
तदा वंशस्यविस्तारो जायते नात्र संशय:।।
प्रमेह रोग शांत्यर्थम् प्राप्नुयात मान्सेप्सितम।
केवलं दुग्धधारा च वदा कार्या विशेषत:।।
शर्करा मिश्रिता तत्र यदा बुद्धिर्जडा भवेत्।
श्रेष्ठा बुद्धिर्भवेत्तस्य कृपया शङ्करस्य च।।
सार्षपेनैव तैलेन शत्रुनाशो भवेदिह।
पापक्षयार्थी मधुना निर्व्याधि: सर्पिषा तथा।।
जीवनार्थी तू पयसा श्रीकामीक्षुरसेन वै।
पुत्रार्थी शर्करायास्तु रसेनार्चेतिछवं तथा।।
महलिंगाभिषेकेन सुप्रीत: शंकरो मुदा।
कुर्याद्विधानं रुद्राणां यजुर्वेद्विनिर्मितम्।।
- जल से रुद्राभिषेक करने पर वृष्टि होती है।
- कुशा जल से अभिषेक करने पर रोग व दु:ख से छुटकारा मिलता है।
- दही से अभिषेक करने पर पशु, भवन तथा वाहन की प्राप्ति होती है।
- गन्ने के रस से अभिषेक करने पर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
- मधुयुक्त जल से अभिषेक करने पर धनवृद्धि होती है।
- तीर्थ जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- इत्र मिले जल से अभिषेक करने से रोग नष्ट होते हैं।
- दूध से अभिषेक करने से पुत्र प्राप्ति होगी। प्रमेह रोग की शांति तथा मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं
- गंगा जल से अभिषेक करने से ज्वर ठीक हो जाता है।
- दूध-शर्करा मिश्रित अभिषेक करने से सद्बुद्धि की प्राप्ति होती है।
- घी से अभिषेक करने से वंश विस्तार होता है।
- सरसों के तेल से अभिषेक करने से रोग तथा शत्रुओं का नाश होता है।
- शुद्ध शहद से रुद्राभिषेक करने से पाप क्षय होते हैं। इसके अलावा
1. शिवलिंग पर कच्चे चावल चढ़ाने से धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है।
2. तिल चढ़ाने से समस्त पापों का नाश होता है।
3. शिवलिंग पर जौ चढ़ाने से लंबे समय से चली रही परेशानी दूर होती है।
4. शिवलिंग पर गेहूं चढ़ाने से सुयोग्य पुत्र की प्राप्ति होती है।
5. शिवलिंग पर जल चढ़ाने से परिवार के किसी सदस्य का तेज बुखार कम हो जाने की मान्यता है।
6. शिवलिंग पर दूध में चीनी मिलाकर चढ़ाने से बच्चों का मस्तिष्क तेज होता है।
7. शिवलिंग पर गन्ने का रस चढ़ाने से सभी सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है।
8. शिवलिंग पर गंगा जल चढ़ाने से मनुष्य को भौतिक सुखों के साथ-साथ मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।
9. शिवलिंग पर शहद अर्पित करना करने से टीबी या मधुमेह की समस्या में राहत मिलती है।
10. शिवलिंग पर गाय के दूध से बना शुद्ध देसी घी चढ़ाने से शारीरिक दुर्बलता से मुक्ति मिलती है।
11. शिवलिंग पर आंकड़े के फूल चढ़ाने से सांसारिक बाधाओं से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
12. शिवलिंग पर शमी के पेड़ के पत्तों को चढ़ाने से सभी तरह के दु:खों से मुक्ति प्राप्त होती है।
उपरोक्त कार्य सोमवार, त्रयोदशी, शिवरात्रि या श्रावण के मास में नित्य करेंगे, तो लाभ मिलेगा।
भगवान शिव के रुद्राभिषेक से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। साथ ही, ग्रह जनित दोषों व रोगों से भी मुक्ति मिल जाती है।
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आचार्य हरीश लखेड़ा
शनिवार, 20 जुलाई 2024
मेरी शादी कब होगी
विवाह संस्कार जीवन का पवित्र बंधन माना जाता है । कभी न टूटने वाला बंधन । संसार के उत्सर्जन गृहस्थ जीवन के द्वारा अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाना , संसार के गतिविधियों को आगे बढ़ना , संसार की गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए प्रथम आवश्यक होता है संतान उत्पत्ति , यहीं से पुरुष की अपनी जिम्मेदारी के साथ अपने परिवार के साथ जीवन निर्वाह करता है । गृहस्थ जीवन में बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । किंतु आनंद भी गृहस्थ जीवन में ही है । जहां मनुष्य सभी प्रकार भोगों का आनंद प्राप्त करता है । साथ में भजन भी होता रहता है । सबसे बड़ी तपस्या गृहस्थ जीवन में ही होती है । जहां मनुष्य को हर द्वार से गुजरना पड़ता होता है। विशेष कर के जीवन में हमे अपनी साख को बचा के रखना होता है । जो निरन्तर वंशवाद के द्वारा हम आगे बढ़ाते रहते है । शदियों तक चलता रहता है ।
अब लगता है। यह सब टूट जाएगा और टूट रहा है । जात पात सिर्फ नाम का होगा । नाम के ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्ध रह जाएंगे ।
बहुत सारे परिवार ऐसे हैं जिनकी लड़कियों ने प्रेम विवाह करके दूसरे समाज में चली गई है । और अपने लड़के के लिए उन्हें बहू अपनी जात धर्म कि चाहिए , तो संतुलन कैसे बनेगा । समाज के सभी विद्वानों ने इस पर गहन चिंतन करना चाहिए और सभी माता-पिता ने भी इस पर विचार करना । आज अपने समाज में देखें बहुत सारे युवा, युवती बिना शादी के घर बैठे है
आज प्रेम विवाह का समय चल रहा है । यह ठीक नहीं है ।जो समाज के लिए दीमक का काम कर रहा है । ऐसा ही रहा तो आने वाले समय में आपको जानने वाले , आपकी पहचान क्या है , आपकी सभ्यता क्या है ,आपकी प्रथाएं क्या है ,आपकी कुल परम्परा यह सब समाप्त होती जाएगी। देव ,पितृ सब लुप्त हो जाएंगे ।
आज के समय में बहुत से परिवारों के यहां एक से दूसरा बच्चा नहीं दिखाई देता । यहां पर देखा जाय तो दो में से एक परिवार वैसे ही लुप्त हो जाता है । यहां पर आपका धर्म सीमित ,परिवार सीमित , बच्चे सीमित हो जाते हैं । क्या पाया , क्या खोया ।
आज के समय में बच्चों के विवाह के लिए बहुत ही परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है । आज आप एक लड़के की कुंडली पर सौ लड़कियों की कुंडली जुड़ा दीजिए फिर भी बात नहीं बनती । आज के युवा 35 , 40 के ऊपर आ जाते है तब विवाह हो रहा है। कई कई परिवार बहुत परेशान है।
समाज अगर ऐसा ही चला रहा आने वाले समय में क्या होने वाला है कोई नहीं जनता इतना जरूर है समाज की व्यवस्थाएं जरूर चरमरा जाएगी ।
🚩।।सत्य सनातन अखंड धर्म जय।।🚩
पंडित हरीश चंद्र लखेड़ा
ज्योतिषाचार्य
रविवार, 14 जुलाई 2024
वर्ण संकर
वर्ण संकर
वर्ण संकर किसे कहते हैं । मां की अन्य जात हो, पिता किसी अन्य जात का हो इन दोनों के संयोग से जो संतान उत्पन्न होती है । उसे वर्ण संकर कहा जाता है । वर्ण संकर संतान के द्वारा किए जान वाले सभी धार्मिक कार्यों में सिद्धि नहीं मिलती और पितरों को दिया हुआ अन्नदान जल दान भी किसी काम नहीं आता । और २१ पीढ़ी के पितृ नरक को भोगते हैं ।
गीता में कहा गया है :-
गीता के प्रथम अध्याय मैं वर्णित है ।
कुलक्षये प्रणश्यन्ति कुल धर्मा: सनातना:।
धर्मे नष्टे कुलं कृत्स्नमधर्मोभिभवत्युत ।।
कुल के नाश से कुल धर्म नष्ट हो जाते है जिससे संपूर्ण कुल में पाप फैल जाता है ।
अधर्माभि भवात्कृष्ण प्रदुष्यंती कुलस्त्रिय: ।
स्त्रीषु दुष्टासु वार्ष्णेय जयते वर्णसंकरः ।।
अत्यंत पाप बढ़ जाने पर कुल की स्त्रियां अत्यंत दूषित हो जाती है और इससे वर्ण संकर संताने होती हैं ।
सन्क नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च ।
पतन्ति पितरों ह्येषां लुप्त पिण्डोदक क्रिया: ।।
वर्ण संकर कुल को नर्क में ले जाता है और श्रद्धा एवं तर्पण से वंचित इनके पितर लोग भी अधोगति को प्राप्त होते हैं ।
दोषैरेतै: कुलघ्नानां वर्ण संकर कारकै:।
उत्साद्यन्ते जाति धर्मा कुलधर्मान्च शाश्वता: ।।
इस प्रकार वर्ण संकर कारक दोषों से कुल घातियों के सनातन कुल धर्म और जाति धर्म नष्ट हो जाते हैं ।
जिसका कुल धर्म नष्ट हो जाता है उसका अनिश्चितकाल तक नरक में वास होता है ।
हम लोग बुद्धिमान होकर भी महान पाप करने को तैयार हो गये हैं ।
अपना धन अपना राज्य अपना सुख पाने के लिए हम अपनों को ही करने के लिए उद्यत हो रहे हैं ।
बुधवार, 8 मई 2024
श्री राधा कृष्ण विवाह प्रसंग
🌹श्री राधा कृष्ण विवाह प्रसंग 🌹
गर्ग संहिता के गोलोक खंड में यह वर्णन मिलता है, कि भांडीर वन में नंद जी के द्वारा श्रीराधा कि स्तुति, श्रीराधा और श्रीकृष्ण का विवाह ब्रह्मा द्वारा संपन्न किया गया ।
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमं ।
देवी ं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्।।
श्री नारद जी कहते हैं--
राजन ! एक दिन नन्द जी अपने नंद नंदन को अंक में लेकर लाड लड़ते और गाय चराते हुए बहुत दूर निकल गए धीरे-धीरे भांडीर वन में जा पहुंचे जो कालिंदी नदी का स्पर्श करके बहाने वाले शीतल समीर के झोखे से कंपित हो रहा था। थोड़ी ही देर में श्रीकृष्ण की इच्छा से वायु का वेग अत्यंत प्रखर हो उठा । वृक्षों के पल्लव टूट कर नीचे गिरने लगे, चारों ओर अंधकार छा गया। नंदनंदन रोने लगे वह पिता की गोद में भयभीत दिखाई देने लगे। नंद बाबा के मन में भी भय हो गया। वह शिशु को गोद में लेकर श्री हरि को याद करने लगे।
उसी क्षण करोड़ सूर्यों के समूह की सी दिव्य दीप्ति उदित हुई। जो संपूर्ण दिशाओं में व्याप्त थी। वह निकट आई सी जान पड़ी। उसे दीप्ति राशि के भीतर राजा ने वृषभानुनंदिनी श्रीराधा को देखा ,वह करोड़ों चंद्र मंडलों की कांति धारण किए हुए थी। नंदबाबा ने राधा जी की स्तुति की मस्तक झुकाकर हाथ जोड़कर प्रणाम किया ।
कहा - राधे यह साक्षात पुरुषोत्तम है । और तुम उनकी मुख्य प्राण बल्लभा हो। मैं यह गुप्त रहस्य गर्ग जी मुख से सुनकर जानता हूं ।
राधे आप अपने प्राण नाथ को मेरे अंक से ले लो । यह बादलों की गर्जना से डर गए है ।
श्रीनंद जी कहते हैं --
राधे तुमने मुझे दर्शन दिए वास्तव में तुम सब लोगों के लिए दुर्लभ हो।
श्री राधा ने कहा --
नंद जी तुम ठीक रहते हो। मेरा दर्शन दुर्लभ ही है । आज तुम्हारे भक्ति भाव से प्रसन्न होकर ही मैंने तुम्हें दर्शन दिया है ।
श्रीनारद जी कहते हैं--
राजन !तब तथास्तु कहकर श्री राधा ने नंद जी की गोद से अपने प्राणनाथ को दोनों हाथों में ले लिया। फिर नंदबाबा वहां से चले । तब राधाजी भांडीर वन में चली गई ।
पहले गोलोक से पृथ्वी देवी इस भूतल पर उतरी थी ।
वे अपना दिव्य रूप धारण करके प्रकट हुई। उक्त धाम में जिस तरह पद्मराग मणियों से जटित सुवर्णमयी भूमि शोभा पाती है, इस तरह इस भूतल पर भी ब्रजमंडल उस दिव्य रूप भूमिका तत्क्षण अपने संपूर्ण रूप में आविर्भाव हो गया ।
वृंदावन काम पूरक दिव्य वृक्षों के साथ अपना दिव्य रूप धारण करके शोभा पाने लगा।
दिव्या धाम की शोभा का अवतरण होते ही साक्षात पुरुषोत्तम घनश्याम भगवान श्रीकृष्णा किशोरावस्था के अनुरूप दिव्य रूप धारण करके श्री राधा के सम्मुख खड़े हो गए उनके अंगों पर पीतांबर शोभा पा रहा था। कौस्तुभ मणि से विभूषित थे। हाथोंमें वंशी धारण किए हुए , मन को मोहित कर रहे थे।
सिंहासन पर विराजमान होकर एक दूसरे को परस्पर देखते हुए सिंहासन पर विराजित हो गए । अपनी दिव्य शोभा का प्रसार करने लगे ,एक दूसरे को मीठी मीठी बाते बोलने लगे ।
इसी समय देवताओं में श्रेष्ठ विधाता भगवान ब्रह्मा आकाश से उतरकर परमात्मा श्री कृष्ण के समक्ष आए और उन दोनों के चरणों में नमस्कार हाथ जोड़कर कमनीय वाणी द्वारा चारों मुखों से मनोहर स्तुति करने लगे।
श्री ब्रह्माजी बोले--
प्रभु आप सबके आदि कारण हैं, किंतु आपका कोई आदि अंत नहीं है, आप समस्त पुरुषोत्तम में उत्तम है ,आप सदा अपने भक्तों में वात्सल्य भाव रखना वाले श्री कृष्ण नाम से विख्यात हैं।
श्रीनारद जी कहते हैं--
राजन ! इस प्रकार स्तुति करके ब्रह्मा जी ने उठकर कुंड में अग्नि प्रज्वलित कि और अग्निदेव के सम्मुख बैठे हुए प्रिया प्रियतम के वैदिक विधि विधान से पाणीग्रहण संस्कार की विधि पूरी की।
यह सब करके ब्रह्मा जी ने खड़े होकर श्री हरी और श्री राधा जी से अग्नि देव की सात परिक्रमा करवाई। विधाता ने उन्हें सात वचन कहे और हृदयालंबन करवाया और इसके बाद श्रीराधा जी ने भगवान श्री कृष्ण को पुष्प की माला पहनाई और फिर भगवान श्री कृष्ण ने श्रीराधाजी को पुष्प का हार पहनाया ब्रह्मा जी ने दोनों से अग्निदेव को प्रणाम करवाया। इस प्रकार उन्होंने राधा जी को श्री कृष्ण के हाथ में सौंप दिया।
आकाश मंडल से पुष्पों की वर्षा होने लगी गंधर्व किन्नरों ने मधुर स्वर से श्रीराधा कृष्ण युगल छवि के लिए शुभ मंगल गान किया, मृदंग, वीणा, शंख ,वेणु ,ढोल नगाड़े , करताल, आदि बाजे बजने लगे । आकाश मंडल में खड़े हुए श्रेष्ठ देवी देवताओं ने मंगल शब्द का उच्च स्वर से उच्चारण करते हुए बारंबार जय जयकार किया।
विवाह की मंगल बेला पर श्री हरि ने विधाता से कहा -- ब्राह्मण देव आप अपनी इच्छा के अनुसार अपनी दक्षिण बताइए , तब ब्रह्माजी ने श्री हरि से इस प्रकार कहा प्रभु मुझे अपने युगल चरणों की भक्ति ही दक्षिण के रूप में प्रदान कीजिए । श्री हरि ने तथास्तु कहकर के अभीष्ट वरदान दिया ।
इसके बाद ब्रह्मा जी ने श्री युगल चरणों को प्रणाम करके अपने स्वधाम को प्रस्थान किया ।
जय श्री राधे
जय श्री कृष्णा
सोमवार, 8 अप्रैल 2024
🕉️हिन्दू नव वर्ष नव संवत्सर २०८१
🕉️सनातन हिंदू नव वर्ष संवत् २०८१
ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।
सनातन हिंदू नववर्ष का प्रारंभ चैत्र मास के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा वासंतिक नवरात्र से होता है। आज के दिन ब्रह्मा जी ने जगत की रचना की है।
अंग्रेजी तारीख ०९ अप्रैल २०२४ से सनातन नव वर्ष नव संवत्सर प्रारंभ होगा।
नववर्ष के आगमन पर लोग अपने घर व देवस्थान को सुशोभित कर प्रथम दिन की शुरुवात देव पूजन से करते है ।
अपने कुलदेवी, कुलदेवता ,गुरु,अपने अग्रजों से आशीर्वाद प्राप्त करते है । जिससे हमारा नया साल सुख शांति पूर्वक यापन हो, खुशियों से भरा हो ।
इसी दिन से घरों में नवरात्रि घट स्थापन,मातारानी की पूजा पाठ व्रत किए जाते है ।
नव संवत्सर फल --
इस वर्ष कालयुक्त नाम संवत्सर रहेगा । कालयुक्त संवत्सर में अन्न धन कि कमी नही होगी , प्रजा में आनंद का वातावरण रहेगा । वर्ष पर्यंत कालयुक्त नाम संवत्सर का ही विनियोग होगा। इस वर्ष राजा मंगल , मंत्री शनि है। राजा और मंत्री में मधुर मैत्री नही है। इसलिए परस्पर मतभेद की स्थिति बनी रहेगी। प्रजा सुखी होगी। शत्रु शांत रहेंगे, रोगों में वृद्धि होगी।
भारत के पड़ोसी देशों में प्राकृतिक आपदा, भूकम्प,आपसी टकराव , जन धन कि हानि होगी।यूरोपी देशों में मंदी की स्थिति बनेगी।
राजनैतिक,आर्थिक ,व्यापारिक,शिक्षा कि दृष्टि में भारत विश्वगुरू कि राह पर अग्रसर रहेगा। कहीं - कहीं आतंकी गतिविधियां हो सकती हैं। वैज्ञानिक ज्ञान प्रतिभा का विश्व में प्रभाव बढेगा । वर्षा के सामान्य योग है । शारदीय फसलों पर प्रभाव पड़ेगा।
वर्ष अपैट --
मेष ,सिंह, धनु, राशि वालों जातकों को वर्ष अपैट है। मिथुन, तुला, कुंभ राशि वाले जातकों को प्रथम संक्रांति(वैशाखी) अपैट है। संक्रान्ति,पूर्णिमा पर दुर्गा सप्तशती का पाठ, सफेद वस्तु का दान करें।
विषुवत चक्र में जन्म नक्षत्र यदि
सर भाग में हो तो यश प्राप्ति ,
मुंह भाग में हो तो विद्या प्राप्ति ,
हृदय भाग में हो तो धन लाभ ,
दाहिने हाथ में हो तो दांपत्य सुख,
बाएं हाथ में हो अर्थ अभाव ,
दाहिने पैर में हो निरर्थक भ्रमण ,
बाएं पैर में हो तो रोग आदि,
वामपद दोष --
जिन जातकों का नक्षत्र आर्द्रा, पुनर्वसु , पुष्य है । उन्हें विषुवत संक्रांति वाम पाद में है । अरिष्ट निवृति के लिए चांदी का पद, चावल ,दही,सफेद वस्त्र दान अर्चन श्रेयस्कर होगा ।
शनि साढ़ेसाती --
इस बार वर्ष पर्यंत शनिदेव कुंभ राशि पर रहेंगे ।
अतः मकर ,कुंभ तथा मीन राशि वालों के लिए शनि की साढे साती का प्रभाव रहेगा ।
कर्क ,वृश्चिक राशि वालों के लिए शनि की ढैया चलेगी ।
शनि की साढेसाती मीन राशि वालों के लिए सिर पर रहने से कार्यो में देरी,अपव्यय ,अच्छे अवसर की हानि, स्वास्थ्य कमजोर होगा ।
कुंभ राशि वालों के लिए हृदय पर रहने से स्वास्थ्य में उतार चढ़ाव,आलस्य ,अरुचि ,पत्नी कष्ट , व्यापार में मंदी रहेगी।
मकर राशि वालों के लिए पैर पर माता पिता को कष्ट ,राज पक्ष प्रतिकूल रहेगा ।
उपाय --
जिस राशि वालों पर शनि की ढैया साडेसाती चल रही है । उन्हें सुंदरकांड रामायण तथा हनुमान चालीसा का नित्य पाठ शनि चालीसा का पाठ शनिवार का व्रत करना चाहिए । शनिवार को प्रातः पीपल वृक्ष में जल दान तथा सायं दीपदान करना चाहिए।
काले घोड़े की नाल की अंगूठी शनिवार को मध्यमा उंगली में धारण करना चाहिए।
शनिवार का व्रत तथा शनि का जप, होम, दान करना चाहिए।
।।जय शनिदेव।।
।।सबका कल्याण करना।।
🌹नववर्ष नव संवत्सर आप सभी को मंगलमय हो🌹
🌹जय ईस्ट देव🌹
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