शनिवार, 27 जनवरी 2024
रविवार, 21 जनवरी 2024
मानव सभ्यता का विकास या ह्रास हो रह है
मतलब की दुनिया, मतलब का प्यार है ।
माया तू नही रही , तो सब निराधार है ।।
संसरति इति संसार:
संसार जब रंग बदल सकता है ,तो मानव भी बदल सकता है । दोनो में एक समानता है ? संसार समय समय पर खिसकता है मानव का नव नया करता है ।ये दोनो समय समय पर रंग बदलते है ।
मानव की कल्पना के आगे शायद भगवान भी सोचते होंगे मेरे बनाए नियमों का उलंघन करता है जिसके फल स्वरूप दुनिया में अशांति का माहौल बनने लगता है।
इतिहास गवाह है जब जब इस वसुंधरा पर विद्वानों का प्रादुर्भाव हुवा उन्होंने समाज को भ्रमित ही किया है या यू कह सकते अपनी रोटी सेकी और समाज को तोड़ मरोड़ कर संसार से चले गए ।सनातन सभ्यता से ही कितनी सभ्यताओं ,धर्मो, पंथों का जन्म हुआ ,उसके कारण जनक कॉन थे _? ।
सोमवार, 15 जनवरी 2024
सत्संग बड़ा या तप
एक बार की बात है विश्वामित्र व वशिष्ठ जी मे बहस हो गयी कि सत्संग बड़ा या तप,।
विश्वामित्र जी की राय थी कि मैने तप के बल से सिद्धियाँ प्राप्त की है ,अतः तप का बल बड़ा है।वशिष्ठ जी उनके तर्क से सहमत नहीं थे,उन्होने कहा सत्संग अधिक श्रेष्ठ है।
अब दोनों इस बात को सिद्ध करने के लिये ब्रह्मा जी के पास गये और अपना प्रश्न उनके आगे रखा।ब्रह्मा जी ने कहा में अभी सृष्टि के कार्य मे व्यस्त हुँ ,इस लिये आप दोनों विष्णु जी के पास जायँ वहाँ आपके शंका का समाधान होगा ।
दोनों मुनि विष्णु जी के पास गयें ,प्रश्न सुनकर भगवान विष्णु जी ने मन में विचार किया अगर तप को श्रेष्ठ कहुँ तो वशिष्ठजी जी नाराज हो जायँगे ,इस लिए विष्णु जी ने बात टालते हुये ,कह दिया में सृष्टि के पालन कार्य में लगा हुँ ,इसलिये आप दोनो शिव जी के पास जाएं ।
जब दोनों ने भगवान शिव जी को प्रश्न रखा तो शिव जी ने शेषनाग के पास भेज दिया।शेषनाग को शंका का समाधान करने को कहा,शेषनाग जी ने कहा मैने अपने सिर पर पृथ्वी का भार उठा रखा है।इसलिए कुछ देर के लिये दोनों में से कोई पृथ्वी के भर को संभाल सको तो में किंचित विश्राम करके आपके प्रश्न का समाधान कर सकूंगा।
इस बात पर तप के अहंकार में विश्वामित्र ने कहा कि पृथ्वी को आप मुझे दीजिये।जब पृथ्वी नीचे की ओर आने लगी तो शेषनाग ने कहा सम्भालिये पृथ्वी रसातल को जा रही है।
तब विश्वामित्र ने कहा में अपना सारा तपोबल देता हूँ।पृथ्वी रुक जा परन्तु पृथ्वी नही रुकी।
यह देखकर वशिष्ठ जी ने कहा में आधी घड़ी के सत्संग का बल देता हूँ, वशिष्ठ जी के इतना कहते ही पृथ्वी रुक गयी।
अब पृथ्वी को शेषनाग जी ने अपने सिर पर धारण कर लिया और दोनों को जाने के लिये कहा।
विश्वामित्र जी मे कहा हमारे प्रश्न का उत्तर हमे मिला नही।तब शेषनाग जी ने कहा फैसला तो हो गया कि पृथ्वी जीवन का सारा तपोबल लगाने से भी स्थिर नही हुई और आधी घड़ी के सत्संग से ठहर गयी।अथार्त सत्संग तप से बड़ा होता है।।
बिनु सतसंग विवेक न होई।
राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।।
यानी सत्संग से ही ज्ञान की प्राप्ति होती है
एक घड़ी ,आधी घड़ी,आधी में पुनि आध।
तुलसी चर्चा राम की, हरे कोटि अपराध ।।
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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
अपामार्जन विधान एवं कुशापामार्जन स्तोत्रम्
॥ अपामार्जनविधानं ॥
अपनी तथा दूसरों की रक्षा का उपाय है, उसका नाम है मार्जन या (अपामार्जन) यह वह रक्षा है,जिसके द्वारा मानव सभी दुःख से छूट जाता है और निरन्तर सुख को प्राप्त करता है ।
भगवान वराह ,नृसिंह , वामन को नमस्कार करके कुशपामार्जन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए ,विष्णु जी के स्मरण मात्र से जगत में फैले समस्त दूषित रोग शांत होते है ।भगवान नारायण जी के शरीर से उत्पन्न कुशा के द्वारा रोग नष्ट होते है ।
विधि:-
शरीर में उत्पन्न रोग व जगत में फैलने वाली बीमारियों के समूल नाश के लिए
कुशपामार्जन स्तोत्र के पाठ से आसाध्य रोगी के रोग को ठीक किया जा सकता है, कुशा २१ गांठ बनाकर इस स्तोत्र का पाठ करते हुए रोगी को २१बार झाड़ा जय तो रोगी का रोग हरता चला जाता है ।
॥ कुशापामार्जन स्तोत्रम्॥
ॐ वराह नरसिंहश वामनेश त्रिविक्रम ।
हयग्रीवेश सर्वेश हृषीकेश हराशुभम ॥१॥
अपराजित चक्राद्यैश्चर्भि परमायुधैः ।
अखण्डितानुभावस्त्वं सर्वदुष्टहरो भव॥2॥
हरामुकस्य दुरितं सर्व च कुशलं कुरु ।
मृत्युबन्धार्ति भयदं दुरिष्टस्य च यत्फलम् ॥३॥
पराभिध्यान सहितै: प्रयुक्तं चाभिचारिकम् ।
गरस्पर्शमहारोगप्रयोगं जरया जर ॥४॥
ॐ नमो वासुदेवाय नमः कृष्णाय खगिने खड्गिने ।
नमः पुष्करनेत्रा केशवायादिचक्रिणे ॥५॥
नमः कमल किन्जल्कपीतनिर्मलवाससे ।
महाहव रिपुस्कन्ध धृष्टचक्राय चक्रिणे ॥६॥
दँष्ट्रोधृत क्षितिभूते त्रयीमूर्तिमते नमः ।
महायज्ञ वराहाय शेषभोगाङ्कशायिने ॥७॥
तप्तहाटक केशान्त ज्वलत्पावक लोचन ।
वज्राधिक नख स्पर्श दिव्यसिंह नमोऽस्तु ते ॥८॥
कश्यपायाति ह्रस्वाय ऋग्यजु सामभूषिणे ।
तुभ्यं वामनरूपायानमते मां नमो नमः ॥९॥
वराहारोषदुष्टानि सर्वपापफलानि वै ।
मर्द मर्द महादंष्ट्र मर्द मर्द च तत्फलम् ॥१०॥
नारसिंह करालास्य दंत प्रांता नलोज्जवल ।
भंज भंज निनादेन दुष्टान् पश्यार्तिनाशन ॥११॥
ऋग्यजुःसाम गर्भाभिर्वाग्भिर्वा मनरुपधृक् ।
प्रशमं सर्वदुःखानि नयत्वस्य जनार्दन ॥१२॥
ऐकाहिकं द्वयाहिकं च तथा त्रिदिवसं ज्वरम् ।
चातुर्थिकं तथा त्युग्रं तथैव सतनं ज्वरम् ॥ १३॥
दोषोत्थं संनिपातोत्यं तथैवागन्तुकं ज्वरम् ।
शमं नयाशु गोविन्द च्छिन्धि च्छिन्ध्यस्य वेदनाम् ॥१४॥
नेत्रदुःखं शिरोदुःखं दुःखं बोदरसम्भवम् ।
अनिश्वासमतिश्वासं परितापं सवेपथुम् ॥१५॥
गुद घ्राणाङघ्रिरोगांश्च कुष्टरोगांस्तथा क्षयम् ।
कामलादींस्तथा रोगान् प्रमेहांश्चातिदारुणान् ॥१६॥
भगन्दरातिसारांश्च मुखरोगांश्च बल्गुलीम् ।
अश्मरीं मूत्रकृच्छ्रांश्च रोगानन्यांश्च दारुणान् ॥१७॥
ये वातप्रभवा रोगा ये च पित्तसमुद्भवाः ।
कफोद्भवाश्च ये केचिद् ये चान्ये सांनिपातिकाः ॥१८॥
आगन्तुक ये रोगा लूताविस्फोटकादयः ।
ते सर्वे प्रशम यान्तु वासुदेवस्य कीर्तनात् ॥१९॥
विलयं यान्तु ते सर्वे विष्णोरुच्चारणेन च ।
क्षयं गच्छन्तु चाशेषास्ते चक्राभिहता हरेः ॥२०॥
अच्युतानन्तगोविन्दनामोचारणभेषजात् ।
नश्यन्ति सकला रोगाः सत्यं सत्यं वदाम्यहम् ॥२१॥
स्थावर जङ्गमं वापि कृत्रिमं चापि यद्विषम् ।
दन्तोद्भव नखभवमाकाशप्रभवं विषम् ॥२२॥
लूतादिप्रभवं यच्च विषमन्यत्तु दुःखदम् ।
शमं नयतु तत्सर्व वासुदेवस्य कीर्तनम् ॥२३॥
ग्रहान् प्रेतग्रहांश्चापि तथा वै डाकिनीग्रहान् ।
बेतालांच पिशाचांश्च गन्धर्वान् यक्षराक्षसान् ॥ २४॥
शकुनीपूतनाद्यांश्च तथा वैनायकान् ग्रहान् ।
मुखमण्डी तथा क्रूरां रेवती वृद्धरेवतीम् ॥२५॥
वृद्धिकाख्यान्ग्रहांश्चोग्रांस्तथा मातृग्रहानपि ।
बालस्य विष्णोचरितं हन्तु बालग्रहानिमान् ॥२६॥
वृद्धाश्च ये ग्रहाः केचिद् ये च बालग्रहाः क्कचित् ।
नसिंहस्य ते दृष्ट्या दग्धा ये चापि यौवने ॥२७॥
सटाकरालवदनो नारसिंहो महाबलः ।
ग्रहानशेषान्नि: शेषान् करोतु जगतो हितः ॥२८॥
नरसिंह महासिंह ज्वालामालोज्ज्वलानन ।
ग्रहानशेषान् सर्वेश खाद खादाग्निलोचन ॥२९॥
ये रोगा ये महोत्पाता यद्विषं ये महाग्रहाः ।
यानि च क्रूरभूतानि प्रहपीडाञ्च दारुणाः ॥३०॥
शस्त्रक्षतेषु ये दोषा ज्वालागर्दभकादयः ।
तानि सर्वाणि सर्वात्मा परमात्मा जनार्दनः ॥३१॥
किंचिद्रुपं समास्थाय वासुदेवास्य नाशय ।
क्षिप्त्वा सुदर्शनं चक्र ज्वालामालातिभीषणम् ॥३२॥
सर्वदुष्टोपशमनं कुरु देववराच्युत ।
सुदर्शन महाज्वाल च्छिन्धि च्छिन्धि महारव ॥३३॥
सर्वदुष्टानि रक्षांसि क्षयं यान्तु विभीषण ।
प्राच्या प्रतीच्यां च दिशि दक्षिणोत्तरतस्तथा ॥३४॥
रक्षां करोतुह सर्वात्मा नरसिंहः स्वगर्जितै:।
दिवि भुज्यन्तरिक्षे च पृष्ठतः पाश्वतोऽग्रतः ॥३५॥
रक्षां करोतु भगवान् बहुरूपी जनार्दनः।
यथा विष्णुर्जगत्सर्व सदेवासुरमानुषम् ॥३६॥
तेन सत्येन दुष्टानि शममस्य व्रजन्तु वै ।
यथाविष्णौस्मृते सद्य: संक्षयं यान्ति पातकाः ॥३७॥
सत्येन तेन सकलं दुष्टमस्य प्रशाम्यतु ।
यथा यज्ञेश्वरो विष्णुर्देवेष्वपि हि गीयते ॥३८॥
सत्येन न सकलं यन्मयो तथास्तु तत् ।
शान्तिरस्तु शिवं चास्तु दुष्टमस्य प्रशाम्यतु ।।३९।।
वासुदेवशरीरोत्थेः कुशेनिर्णाशितं मया ।
अपामार्जन गोविन्दो नरो नारायणस्तथा ॥ ४०॥
तथास्तु सर्वदुःखानां प्रशमो वचनाद्धरे:।
अपामार्जनकं शस्तं सर्वरोगादिवारणं ॥४१॥
अहं हरि: कुशा विष्णुहर्ता रोगा मया तव ।।४२ ॥
॥ इति कुशपामार्जन स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥
नोट:-
मेरे गुरुजी कमलाकान्त शुक्ल जी ने इस स्तोत्र को मुझसे कहा जब वे जीवित थे । आज उनका स्मरण होने पर मुझे इस स्तोत्र की याद आयी जी आप तक पहुंचाने की जिज्ञासा हुई ।
जय गुरुदेव
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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
॥ हनुमद्वडवानलस्तोत्रम् ॥
॥ हनुमद्वडवानलस्तोत्रम् ॥
॥ श्रीगणेशाय नमः ॥
यह वाडवानल स्तोत्र सर्वसिद्धि प्रदायक है ।इसके पाठ से मनुष्य की सभी कामनाएं पूर्ण होती है ।
संकल्प: --
ॐ अस्य श्रीहनुमद्वडवानलस्तोत्रमंत्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः, श्रीवडवानल हनुमान् ,देवता , मम् समस्तरोगप्रशमनार्थं ,आयुरारोग्यैश्वर्याभिवृद्ध्यर्थं समस्तपापक्षयार्थम् सीतारामचंद्र हनुमद्वडवानलस्तोत्रजपमहं करिष्ये ।।
ध्यान:-
मनोजवं मारुत तुल्य वेगं ,जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं ।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं ,श्रीराम दूतं शरणं प्रपद्ये ।।
स्तोत्रम --
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहाहनुमते प्रकटपराक्रम सकलदिङमण्डलय - शोवितानधवलीकृत - जगतत्रितय वज्रदेह रूद्रावतार लंकापुरी - दहन उमाअर्गल मंत्र उदधिबंधन दशशिरः कुतान्तक सीताश्वासन वायुपुत्र अंजनीगर्भसंभूत श्रीरामलक्ष्मणानन्दकर कपिसैन्यप्राकार सुग्रीव सहाय रणपर्वतोत्पाटन कुमारब्रह्मचारिन् गंभीरनाद सर्वपापग्रहवारण सर्वज्वरोच्चाटन डाकिनीविध्वंसन ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीरवीराय सर्वदुःखानिवारणाय ग्रहमंडल - सर्वभूतमंडल सर्वपिशाचमडलोच्चाटन - भूतज्वर -एकाहिकज्वर- द्व्याहिकज्वर- त्रयाहिकज्वर -चातुर्थिकज्वर -संतापज्वर - विष मज्वर - तापज्वर - माहेश्वरवैष्णवज्वरान् छिंधि छिंधि यक्ष -ब्रह्मराक्षस -भूत - प्रेत - पिशाचान् उच्चाटय उच्चाटय ।
ॐ ह्रां ह्रीं श्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहाहनुमते ॐ ह्रां ह्रीं हूं हैं ह्रौं हः आं हां हां हां हां औं सौं एहि एहि एहि ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ नमो भगवते श्रीमहाहनुमते श्रवणचक्षुर्भूतानां शाकिनी डाकिनीनां विषमदुष्टानां सर्वविषं हर हर आकाशभुवने भेदय भेदय छेदय छेदय मारय मारय शोषय शोषय मोहय मोहय ज्वालय ज्वालय प्रहारय प्रहारय सकलमायां भेदय भेदय ।
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महाहनुमते सर्वग्रहोच्चाटन परबलं क्षोभय क्षोभय सकलबंधन - मोक्षणं कुरू कुरू शिरःशूल - गुल्मशूल - पर्वशूलानिर्मूलय निर्मूलय नागपाशानंतवासुकि - तक्षक - कर्कोटक - कालियान् यक्षकुल - जगत- रात्रिचर - दिवाचर - सर्पा निर्विषान् कुरू कुरू स्वाहा ।
राजभय - चोरभय -परमंत्र -परयंत्र -परतंत्र परविद्याश्छेदय छेदय स्वमंत्र - स्वयंत्र -स्वतंत्रका - विद्याः प्रकटय प्रकटय सर्वारिष्टान्नाशय नाशय सर्वशत्रूनाशय नाशय असाध्यं साधय साधय हुं फट् स्वाहा ।।
॥ इति विभीषणकृतं हनुमद्वडवानलस्तोत्रं संपूर्णम् ॥
रविवार, 7 जनवरी 2024
विश्व के रामभक्तों से निवेदन
विश्व के राम भक्तों से निवेदन माताओं ,बहनों एवं भाइयों आगामी पौष शुक्ल द्वादशी विक्रम संवत २०८० सोमवार दिनांक २२ जनवरी २०२४ के शुभ दिन प्रभु श्री राम के बाल रूप नूतन विग्रह को श्री राम जन्मभूमि पर बना रहे नवीन मंदिर भूतल के गर्भगृह में विराजित करके प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी ।
इस अवसर पर अयोध्या में अभूतपूर्व आनंद का वातावरण होगा, आप भी प्राण प्रतिष्ठा के दिन पूर्वाह्न ११:०० बजे से अपराह्न १:०० बजे के मध्य अपने ग्राम मोहल्ले कॉलोनी में स्थित किसी मंदिर के आस पड़ोस के राम भक्तों को एकत्रित करके भजन कीर्तन करें।
टेलीविजन अथवा कोई पर्दा एलईडी स्क्रीन लगाकर अयोध्या का प्राण प्रतिष्ठा समारोह समाज को दिखाएं शंख ध्वनि घंटानाद आरती करे प्रसाद वितरण करें कार्यक्रम का स्वरूप मंदिर केंद्रित रहे अपने मंदिर में स्थित देवी देवताओं का भजन कीर्तन आरती पूजा तथा श्री राम जय श्री राम जय श्री राम विजय महामंत्र का 108 बार सामूहिक जाप करें इसके साथ हनुमान चालीसा सुंदरकांड राम रक्षा स्तोत्र आदि का सामूहिक पाठ भी कर सकते हैं सभी देवी देवता प्रसन्न होंगे वातावरण सर्वत्र सात्विक एवं राममय हो जाएगा ।
प्राण प्रतिष्ठा समारोह दूरदर्शन द्वारा सीधे प्रसारित किया जाएगा। अनेक चैनलों के माध्यम से भी प्रसारण किया जाएगा।
प्राण प्रतिष्ठा के दिन सायंकाल सूर्यास्त के बाद अपने घर के सामने देवताओं की प्रसन्नता के लिए दीपक जलाएं दीपमालिका सजा विश्व के करोड़ों घरों में दीपोत्सव मनाया जाएगा ।
आपसे निवेदन है की प्राण प्रतिष्ठा के दिन के उपरांत प्रभु श्री रामलला तथा नव निर्मित मंदिर के दर्शन हेतु अपने अनुकूल समय अनुसार अयोध्या जी में परिवार सहित पधारे ।
जय श्री राम भगवान श्री राम आपकी कृपा बनाए रखें
सोमवार, 1 जनवरी 2024
ईसवी नववर्ष २०२४
आंग्ल नव वर्ष २०२४
आंग्ल नववर्ष २०२४ की सभी जनमानुष को शुभ मंगलकामनाएं ,
नया वर्ष आया, नई राहें हैं खुली,
आशा की किरणें, दिल में हैं भरी।
सपनों में ऊँचाई, राह में चुनौतियां,
जीवन में विश्वास, और लिए दिल में एहसास।
नव वर्ष में हो नव सृजन,मिले नई सौगात,सुख,
समृद्धि मिलें,बना रहे अपनों का साथ।।
आपके जीवन में सुख, सम्पदा का लाभ ,
शुभ,लाभ, रिद्धि, सिद्धि,वैभव हो हाथ,
विगत कई वर्षों से मनाते आ रहे हिंदू, अंग्रेजी नव वर्ष जिसका संबंध सनातन धर्म से कही दूर दूर तक नही है ।बड़े धूम धाम से लोग आनंद उठाते है। कई लोग तो मांस मदिरा का उपयोग कर नया साल के आने पर उत्सव मनाते है मानो संसार में जैसे मनुष्य नही असुर नया साल मना रहे है ।
सनातन धर्म में नववर्ष के आगमन पर तो प्रथम देव पूजन से नववर्ष का स्वागत किया जाता है।
गुरुवार, 21 दिसंबर 2023
कुम-गढ़ की धात
।।कुम-गढ़।।
कुम(कुमाऊँ)गढ़(गढ़वाल) भारत भूमि में एक रमणीय सुन्दर देवताओं,संतो की तपस्थली छु देवभूमि उत्तराखंड,जा चारधाम , पंच बद्री, पंच केदार, गोलू देवता , जागेश्वर , बागनाथ, दुनागिरी, वाराही माता आदि बहुत देव स्थान यां छी। देव भूमि कि गाथा सृष्टिक आरम्भ बटी रामायण महाभारत पुराणादि शास्त्रो में वर्णित छू।जो लोगुल उत्तराखंड भूमि लिजी आपणी जान तक दीदी हम सब उनर बलिदान भूली गयु। कुम गढ़ कै उत्तर प्रदेश वै अलग हैवे दी दशक पुर हणी छू। उत्तराखंड अलग हण हैवे पली ,कतुक भल सुणि देखी लोगुल। पर हम बोली कुमाऊँनी गढ़वाली भाषा पौड़ी चमोली टेहरी कुमाऊँ गढ़वाल क्षेत्रवाद पर लटकी छू।जैक हमर आणि वा पीढ़ी पर असर पड़ल ।हमर पूर्वजोल कुतु भल सोचि रहची की हमर आणि वा पीढ़ी की पहाड़ उत्तराखंड छोड़ी बै दूसर प्रदेश नि जाण पड़ो,ओर हमर पाणी हमर जवानी पहाडक काम एजो। पर हमर ,हमर पहाडक दुर्भाग्य छु की आज पुर पहाड़ खाली हैंगो। आज सबुल आपण पुर्वजो घर कुड़ी देवता पटो खेति छोड़ी हाली रीत राह क्वे निजाणन सब रज बनी वै बैठी रही। भ्यारक लोग पहाड़ में बसि गयीं जो सोचिबै हिको विदीर्ण करू।पुराणी विचार धारा छोड़ी वै नई सोच पैद हून चै ।आपण नई पीढ़ी कै पढ़े लिखे पहाड़ भेजण चै।जैल पहाड़ में शिक्षा नई तकनीक ,छुपी पहाडक संस्कृति बढ़ावा,जन जागृति मददगार हैं सको।
म्यर छू कुमाऊँ म्यर छू गढ़वाल।
राजी खुसी रहो म्यर पहाड़।।
बोली भाषा छोड़ी एक हेजाओ।
कंध बै कंध मिलै जोड़ो पहाड़।।
कतु भल पाणी कतु भल बाणी।
कतु भल मनखी कतु भल विचार।।
म्यर छू भाबर म्यर छू हरिद्वार।
छुटि गयी घर छुटि गयी परिवार।।
म्यर छू -------
पुर पहाड़ आयर्वेदिक औषधीय वनस्पति द्वारा भरि पड़ी छू। हमर पहाड़ में रोजगारक अपार सम्पदा जसि आयर्वेद धूप अगरबत्ती हवन पूजा सामग्री नवग्रह समिधा पशुपालन स्वरोजगार मछली मुर्गी पालन टूर ट्रेवल्स फल सब्जी किसानी सरकारी योजना जस बहूत काम छि। पुर भारत मे स्वर्ग अगर कै छू तो उत्तराखंड।आज हमर पहाड़क लोग ईमानदारी में सबु में पली नम्बर छू।उत्तराखंडक धनवान उधोगपति ढुल ढुल पदों पर बैठी लोगुल एक समूह द्वारा विचार मंथन करण चहै। समाजक कु रीत कु प्रथा केँ बन्द करण चहै हमू केँ आपण पितर कुड़ी जनम स्थान लिजी सोचण चै आपण पहाडक विषय मे आपण ननों कै आपण रीत राह ,बार त्यौहार, गीत गाथा, जागर आदि विषय मे बताण चै।आपण गाँव केँ जागृत रखिया यई मेरी कामना छू।सब राजी कुशल मंगल रहिया।आपण मातृ भूमि जन्म भूमि कै झन भुलिय। ।
।।जय ईस्ट देव।।
।।धर्मप्रशंसा।।
।।धर्मप्रशंसा।।
धर्मेण हन्यते व्याधिर्धर्मेण हन्यते ग्रहः ।
धर्मण हन्यते शत्रुर्यतो धर्मस्ततो जयः ॥ १ ॥
देवब्राह्मणवन्दनाद् गुरुवचः सम्पादनात्प्रत्यहं
साधूनामपि भाषणाच्छ तिरवश्रेयःकथाकारणात् ।
होमादध्वरदर्शनाच्छुचिमनोभावाज्जपाद्दानतः
नो कुर्वन्ति कदाचिदेव पुरुषस्यवं ग्रहाः पीडनम् ।। २ ।।
धर्म से व्याधि का नाश होता है , धर्म से ग्रह दब जाता है , धर्म से शत्रु का नाश होता है , जिस ओर धर्म हो उसी ओर जय होती है ।। १ ।।
जो मनुष्य देवता तथा ब्राह्मणों को नमस्कार करते हैं , अपने गुरु का वचन पूरा कराते हैं , साधु लोगों से बोलचाल करते हैं , वेद की ध्वनि सुनते हैं , पुराणों की कथा सुनते हैं , होम करते हैं , यज्ञ के स्थान का दर्शन करते हैं , स्वच्छ चित्त से जप तथा दान करते हैं , उन मनुष्यों को ग्रह पीड़ित नहीं करते हैं ॥ २ ॥
पापिष्ठा ये दुराचारा देवब्राह्मणनिन्दकाः ।
अपथ्यभोजिनस्तेषामकालमरणं ध्रुवम् ।। ३ ।।
धर्मिष्ठा ये सदाचारा देवब्राह्मणपूजकाः ।
ये पथ्यभोजनरतास्ते सर्वे दीर्घजीविनः ॥ ४ ॥
जो मनुष्य पापी होते हैं , बुरे आचरण वाले होते हैं , देवता तथा ब्राह्मणों की निन्दा करते हैं , पथ्य भोजन नहीं करते , उनकी मृत्यु अकाल में होती है ॥ ३ ॥
जो मनुष्य धर्मात्मा होते हैं , अच्छे आचरण वाले होते हैं , देवता तथा ब्राह्मणों की पूजा करते हैं तथा पथ्य भोजन करते हैं वे चिरकाल तक जीते हैं ।। ४ ।।
धर्मात्मनां नीतिमतां सदा जयो
दुरात्मनां वाऽनयिनां पराजयः ॥ ५ ॥
ग्रहा न पीडयन्त्येव श्रुतिस्मृत्युक्तकारिणम् ।
दयाधर्मरतं बालं ब्रह्मज्ञं सत्यवादिनम् ।। ६ ।।
सुरार्चनेन दानेन साधूनां सङ्गमेन हि ।
शुश्रूषया च विप्राणामल्पमृत्युविनश्यति ॥ ७ ॥
जो मनुष्य धर्मात्मा तथा नीतिमान होते हैं , उनका सदा जय होता है , जो मनुष्य दुरात्मा तथा दुर्नीति वाले होते हैं , उनका पराजय होता है ।। ५ ।।
जो मनुष्य श्रुति स्मृति के अनुसार कर्म करता है , दया तथा धर्म में प्रीति रखता है , ब्रह्मज्ञ तथा सत्यवादी है उसको ग्रह पीड़ित नहीं करते हैं ॥ ६ ॥
देवताओं के पूजन करने से ,दान देने से , साधुओं के संगम से , ब्राह्मणों की सेवा करने अल्यमृत्यु का नाश होता है ।। ७ ॥
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*कुमाऊं का पौराणिक वृद्ध केदार शिव मंदिर*
*कुमाऊं का पौराणिक वृद्ध केदार शिव मंदिर*
ग्राम केदार जो कि जिला अल्मोड़ा उत्तराखंड मै रामनगर से 101 किमी, भतरोजखान से 33 किमी, तथा रानीखेत से भाया जालली मासी 67 किमी व रानीखेत से भाया भतरोजखान 61 किमी व भिकियासेन से 8 किमी दूर रामनगर बद्रीनाथ मोटर मार्ग पर रामगंगा नदी के किनारे बसा है। हरी भरी खूबसूरत वादियों के बीच यह मंदिर एक रमणीय स्थल है। इस मंदिर की स्थापना चंद वंशीय राजा रूद्र चंद जी ने राष्ट्रीय शाके 1490 (1568 ईसवी ) में की थी। माना जाता है कि युद्ध के दौरान राजा रूद्र चंद एक रात इस स्थान पर ठहरे थे। भगवान शिव ने उन्हें सपने में दर्शन दिए तथा उन्हें इस स्थान पर मंदिर के निर्माण का आदेश दिया। मंदिर की स्थापना के बाद राजा की हारती हुई सेना ने अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त की। तब से इस मंदिर पर श्रदालुओं की अटूट आस्था है। वृद्ध केदार मंदिर को भगवान केदारनाथ की भी मान्यता प्राप्त है। यह मंदिर कुमाऊँ में बूढ़ केदार के नाम से प्रसिद्ध है। इस मंदिर का वर्णन स्कन्द पुराण के मानस खंड में किया गया है।
मंदिर स्थापना के बाद राजा रूद्र चंद ने शिव मंदिर के पुजारी के लिए ब्राह्मण जाति के कुछ लोगो को ग्राम डुंगरी पौड़ी गढ़वाल से यहाँ लाकर बसाया। मूलरूप से डुंगरी गांव के होने के कारण ये पुजारी डुंगरियाल के नाम से जाने जाते हैं। मंदिर के सरपंच के लिए मनराल जाति के लोगों को नियुक्त किया गया।
वृद्ध केदार शिव मंदिर में शिव धड़ स्वरुप में विराजमान हैं। केदारनाथ में शिव पिंडी स्वरुप में तथा पशुपतिनाथ में शिव सिर स्वरुप में विराजमान हैं l इस क्षेत्र के श्रदालु उत्तराखंड के चार धामों की यात्रा पर प्रस्थान से पहले वृद्ध केदार शिव मंदिर में दर्शन करते हैं। श्रदालुओं के विश्राम के लिए शिव मंदिर के आस पास कई धर्मशालाए निर्मित हैं।
वृद्ध केदार शिव मंदिर मै बैकुंठ चतुर्दशी को सायंकाल के समय मेला लगता है तथा दूसरे दिन कार्तिक पूर्णिमा को श्रदृालु रामगंगा नदी में स्नान करने के पश्चात शिव महादेव का जलाभिषेक तथा पूजा अर्चना करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं l
बैकुंठ चतुर्दशी के दिन यदि कोई निःसंतान स्त्री संतान प्राप्ति की मनोकामना के लिए वृद्ध केदार शिव मंदिर में महादेव का वरदान प्राप्त करने की इच्छा से आती है तथा बैकुंठ चतुर्दशी को रात्रि में प्रज्वलित दीपक हाथ में लेकर ॐ नमः शिवाय का जाप करती है और दूसरे दिन पूर्णमासी को सूर्यौदय के समय उस दीपक को रामगंगा नदी में प्रवाहित कर तैरते दीपक का पांच बार दर्शन करती है तो निःसंदेह ही उन्हें शिव की कृपा से संतान की प्राप्ति होती है।
सावन के महीने में वृद्ध केदार मंदिर में दर्शन हेतु श्रदालुओं की काफी भीड़ रहती है। सावन के सोमवार के दिन जो शिव भक्त १०८ लोटाजल,बेलपत्री,तिल,जौ तथा चावल शिवलिंग पर चढ़ाते हैं, भगवान शिव उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं l वृद्ध केदार मंदिर में सावन के महीने में हर वर्ष महापुराण की कथा का आयोजन किया जाता है जिसमें कथा श्रवण हेतु श्रदालुओं की काफी भीड़ रहती है।
उत्तराखंड में ३३ केाटि देवी देवता वास करते हैं l यहाँ समय समय पर ११ दिन या २२ दिन तक देवी देवताओं की जातरा (जागर ) लगती है। जातरा के अंतिम दिन देवी देवताओं को स्नान हेतु तीर्थ स्थान पर ले जाया जाता है। वृद्ध केदार शिव मंदिर को महातीर्थ स्थल माना जाता है क्योकि यहाँ पर रामगंगा तथा विनोद नदी का संगम है जो कि त्रिवेणी संगम के नाम से प्रसिद्ध है । इसलिए क्षेत्रवासी देवी देवताओं को स्नान के लिए वृद्ध केदार शिव मंदिर लाते हैं l जागरी में अवतार लिए पितरों की आत्मा की शांति के लिए उन्हें स्नान हेतु वृद्ध केदार शिव मंदिर में लाते हैं । महातीर्थ होने के कारण वृद्ध केदार शिव मंदिर में जनेऊ संस्कार तथा विवाह भी संपन्न होते हैं l
महादेव शिव की महिमा अपरंपार है l हम उनकी महिमा का व्याख्यान नहीं कर सकते हैं l
🚩 *हर हर महादेव* 🚩
कन्यादान -योग्य स्थान व कन्यादानाधिकारी
कन्यादान -योग्य स्थान व कन्यादानाधिकारी
कन्यादान का फल शास्त्रों में अनन्त कहा गया है ।कन्यादान को सभी दस दानों में श्रेष्ठदान , महादान कहा है । माता पिता के द्वारा गुण श्रेष्ठ वर के हाथों कन्या का दान किया जाता है ।किस स्थान पर कन्यादान करने से कन्यादान का फल दुगना हो जाता है । जिसके करने से जीव को सभी दानों का पुण्य प्राप्त होता है। इसलिये कन्यादान का स्थल बहुत महत्व पूर्ण है । जो निम्नवत है ।
१ -स्वगृह --
अपने घर में कन्यादान करने से कुलदेवता ,पितृदेव प्रसन्न हो आशीर्वाद देते है। कन्यादाता पितृ ऋण से मुक्त होता है ।
२ - गौशाला --
गौशाला में कन्यादान करने का दसगुना गुना फल मिलता है ।
३ - शिवालय --
शिवालय में कन्यादान करने से हजार गुना फल मिलता है ।
४ -विष्णु मन्दिर --
विष्णु मन्दिर में कन्यादान करने से दसहजार गुना फल है ।
तीर्थ,देवस्थान ,समुद्र तट पर भी कन्यादान सम्पन्न होता है ।
कन्यादान के लिए स्थान का चुनाव सतर्कता से करना चाहिए ।
कन्यादानाधिकारी --
विवाह संस्कार में जब कन्यादान का शुभ मुहूर्त आता है और कन्यादाता कन्या का हाथ थाम के कन्यादान का संकल्प लेते है। वह क्षण माता पिता को दुख भी देता है और सुख भी देता है ।
कन्यादान के समय पिता के उपस्थित नही रहने पर दादा ,भाई, चाचा ,सगोत्री नातेदार , नाना नानी ,मामा आदि कन्यादान कर सकते है । परस्थितियाँ के अनुसार माता भी कन्यादान कर सकती है ।
धर्म सिंधु में लिखा है।"सर्वाभावे जननी"
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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा
ज्योतिषाचार्य
वसई
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