दुबड़ी सातें और सन्तान सप्तमी व्रत
( भाद्रपद शुक्ला सप्तमी )
अधिकांश क्षेत्रों में तो आज के दिन दुबड़ी साते या दुबड़ी सप्तमी का व्रत और त्यौहार मनाया जाता है , तोकुछ परिवारो में सन्तानों की मंगल कामना हेतु संतान सप्तमी के रूप में किया नी जाता है इस व्रत को । संतान सप्तमी व्रत के रूप में यह व्रत दोपहर तक होता है । दोपहर के समय चौक पूरकर शिव - पार्वती का चन्दन , अक्षत , धूप , दीप , नैवेद्य , सुपारी , नारियल आदि से पूजन किया नो जाता है । भोग के लिए खीर - पूड़ी और विशेषकर गुड़ डाले हुए पुए बनाकर तैयार किए जाते हैं। सन्तान की रक्षा हेतु एक डोरा शिवजी को अर्पण करके निवेदन करें - हे प्रभु ! इस कुल - वर्द्धनकारी डोरे को ग्रहण कीजिए । फिर उस डोरे को शिवजी से वरदान के रूप में लेकर स्वयं धारण किया जाता है ।
दुबड़ी सातें के रूप में इस व्रत को करते समय एक पटड़े पर दुबड़ी सातें की मूर्ति बनायें । फिर चावल , जल , दूध, रोली , आटा , घी , चीनी मिलाकर लोई बनायें और उससे दुबड़ी की पूजा करें तथा दक्षिणा चढ़ा कर भीगा हुआ बाजरा चढ़ावें । मोठ , बाजरे का बायना निकाल कर सास को दें और उनके पैर आशीष लें इसके पश्चात दुबड़ी सातें की कथा सुनें । इस दिन ठंडा अथवा बासी भोजन करना चाहिए । यदि किसी वर्ष में किसी के पुत्र का विवाह हुआ हो तो उद्यापन करना चाहिए । उद्यापन में मोठ - बाजरे की तेरह कुड़ी एक थाली में लेकर एक रुपया और एक धोती रखकर हाथ से स्पर्श करके अपनी सास , जेठानी अथवा ब्राह्मणी को दे देवें और आशीष ग्रहण करें ।
कथा -
एक साहूकार के सात बेटे थे । वह जब भी अपने बेटे का विवाह करता , वही मर जाता । इस प्रकार उसके छ : बेटे मर गये । कुछ समय बाद सबसे छोटे लड़के का विवाह भी तय हो गया । सभी नाते - रिश्तेदारों को निमंत्रित कर दिया गया । विवाह में शामिल होने के लिए लड़के की बुआ आ रही थी । रास्ते में वह एक बुढ़िया बेटी के पास बैठी और उसके पांव लगी । बुढ़िया ने पूछा तू कहां जा रही है ? लड़के की बुआ ने सारी बात बताई ।
बुढ़िया बोली - वह लड़का तो घर से निकलते ही दरवाजा गिरने से मर जायेगा । वहां से बच गया तो रास्ते में जिस पेड़ के नीचे बारात रुकेगी वहां पेड़ के गिरने से मर जायेगा । वहां से बच गया तो ससुराल में दरवाजा गिरने से मर जायेगा । अगर वहां से भी बच गया तो सातवीं भांवर पर सर्प के काटने से मर जायेगा ।
यह बात सुनकर लड़के की बुआ बोली - मां , इससे बचने का कोई उपाय है ।बुढ़िया बोली - उपाय तो है , परन्तु है कठिन । सुन , घर से लड़के को पीछे की दीवार फोड़ कर निकालना , रास्ते में किसी पेड़ के नीचे बारात को मत रुकने देना , ससुराल में भी पीछे दीवार फोड़कर वर को अंदर ले जाना और भांवरों के समय एक कटोरे में दूध भर कर रख देना और तांत का फांस बना लेना । जब सांप आवे तो उसे दूध पिलाकर बांध लेना । फिर सांपिन आयेगी तो सांप को मांगेगी , तब तुम उससे अपने छहो भतीजों को मांग लेना । वह उन्हें जीवित कर देगी । यह बात किसी से कहना भी मत , नहीं | तो कहने सुनने वाले दोनों की मृत्यु हो जायेगी और लड़का भी नहीं बचेगा ।
यह सब बताकर बुढ़िया ने अपना नाम दुबड़ी बताया और चली गई । यह सब जानकर बुआ घर आई । जब बारात चलने लगी तो बुआ रास्ता रोककर खड़ी हो गई और बोली मेरे भतीजे को पीछे से दीवार फोड़कर निकालो । जैसे ही लड़का बाहर आया , आगे का दरवाजा गिर पड़ा । सबने कहा , बुआ ने अच्छा किया । लड़के को बचा लिया ।
जब बारात चल दी , तब सबके मना करने पर भी बुआ बारात के साथ चल दी । रास्ते में एक छायादार पेड़ के नीचे बारात कुछ देर को रुकी तो बुआ ने लड़के को पकड़कर खुले स्थान पर धूप में बैठाया । उसके बैठते ही पेड़ गिर गया । यह देखकर सब बुआ की बड़ाई करने लगे ।
जब बारात ससुराल पहुंची तो वहां भी वह पीछे की दीवार फोड़वा कर लड़के को अन्दर ले गई । लड़के के अंदर जाते ही दरवाजा गिर पड़ा । फेरों के समय बुआ दूध का कटोरा और तांत का फास लेकर बैठ गई । जैसे ही सांप वहां आया बुआ ने उसके आगे दूध रख दिया । दूध पीते समय ही उसने उसे तांत से बांध लिया । तब सांपिन आकर सांप को मांगने लगी । तब बुआ ने अपने छहो भतीजे मांगे । सांपिन ने उसके छहों भतीजे जीवित कर दिये और सांप को लेकर चली गई ।
बारात घर वापिस आई तब बुआ ने सप्तमी को दुबड़ी की पूजा कराई । इसी से इसको दुबड़ी सातें कहते हैं । हे दुबड़ी मैया ! जैसे तुमने बुआ को सातों भतीजे दिये वैसे ही सबको देना ।।
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पं हरीश चंद्र लखेड़ा
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