श्रीकृष्ण जन्माष्टमी
( भाद्रपद कृष्ण अष्टमी )
एकोपि कृष्णस्य कृत प्रणामो।
दशाश्व मेधा भृथेन तुल्य: ।।
दशाश्व मेधे पुनरेपी जन्म।
कृष्ण प्रणामो न पुनर्भवाम।।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी हमारे देश का एक प्रमुख त्यौहार है । रक्षाबन्धन के आठ दिन बाद मनाए जाने वाला भगवान श्रीकृष्ण का यह जन्मोत्सव ब्रज मण्डल और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तो बहुत अधिक धूमधाम से मनाया जाता हैं । यह व्रत रात्रि को बारह बजे ही खोला जाता है । भक्ति के रस में रंगा हुआ यह त्यौहार है।
भाद्रपद कृष्ण अष्टमी तिथि को घनघोर बरसती रात्रि में ठीक बारह बजे मथुरा के कारागार में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। उनके पिता वासुदेव ने रात्रि में ही यमुना नदी पार करके किस प्रकार भगवान कृष्ण को नन्दबाबा के यहां पहुचाया , वहां उन्होंने बालपन में ही बड़े - बड़े दैत्यों को मारा और बाललीलाएं कीं , इसे प्रत्येक हिन्दू जानता है।
भगवान श्रीकृष्ण के मन्दिरों में आज विशेष रूप से सजावट की जाती है । भगवान के हिण्डोले झूले डाले जाते हैं और तरह - तरह को झांकियां सजाई जाती हैं । ब्रज मण्डल में तो लगभग प्रत्येक घर में सजाए जाते हैं । भगवान श्रीकृष्ण के सुन्दर हिण्डोले , हिण्डोले अर्थात विशिष्ट पालने को ऊंचे स्थान पर रखकर उसमें नए वस्त्र पहिनाकर श्रीकृष्ण का विग्रह या धातुनिर्मित मूर्ति रखते हैं । इसके सामने की और खिलौने रखकर सजावट की जाती है । कारगार में कृष्णजन्म , वसुदेव द्वारा श्री कृष्ण को नन्दगांव ले जाने , भगवान के रास और गोपाल द्वारा गाय चराने , कंस वध और गीता उपदेश आदि के दृश्य बनाए और सजाए जाते हैं । मन्दिरों में , घरों में और सड़कों के किनारे सार्वजनिक रूप से सजाई जाती हैं ये झांकियां ।
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद अष्टमी- तिथि रोहणी - नक्षत्र में रात्रि को बारह बजे हुआ था । रात्रि बारह बजे से कुछ पूर्व एक मोटे खीरे में भगवान कृष्ण की मूर्ति को रख दिया जाता है । और ठीक बारह बजे इस मूर्ति को खीरे से निकालकर पंचामृत और शुद्ध जल में स्नान कराकर वस्त्रादि पहिनाकर सम्पूर्ण श्रृंगार करते हैं । भगवान की आरति करने के बाद उन्हें भोग लगाते है। इसके बाद भक्त व्रत खोलते है। यह व्रत रात्रि बारह बजे के बाद खोला जाता है। प्रायः फलाहार के रूप मे फल सूखा मेवा और मावे की बर्फियों का प्रयोग होता है। कूटू के आटे की पकोड़ियां और सिंघाड़े के आटे का हलुवा बनाया जाता है और फलों का उपयोग तो करते ही हैं । अधिकांश परिवारों में तो उपरोक्त विधि से ही भगवान कृष्ण की पूजा करके श्रीकृष्ण जन्मोत्सव मना लिया जाता है । जबकि धार्मिक व्यक्ति मन्त्रों के साथ पूर्ण विधि - विधान से भगवान कृष्ण की पूजा - आराधना करते हैं । आज दिन भर श्री कृष्ण भगवान की लीलाओं , क्रीड़ाओं और कार्यों का अध्ययन - मनन , उनके भजनों का गायन तथा विशिष्ट मन्त्रों का जप करना चाहिए ।

बहुत सुंदर जानकारी के लिए धन्यवाद पंडितजी।
जवाब देंहटाएंHare Krishna Pandit Ji bahut Sundar Jankari ke liye dhanyvad prakashit Karen likh raha hun
जवाब देंहटाएं🙏
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