दीपावली और लक्ष्मी पूजन --
कार्तिक अमावस्या --
दीपावली पर लक्ष्मीजी का पूजन घर में ही नहीं , दुकानों और सभी व्यापारिक प्रतिष्ठानों में भी किया जाता है । कर्मचारियों को पूजा के बाद मिठाई , बर्तन और रुपए आदि देने की प्रथा है । त्यौहार का जो वातावरण और सायंकाल दीपदान का जो आयोजन धनतेरस से प्रारम्भ होता है ।
आज के दिन रात्रि को घरों तथा दुकानों पर बड़ी भारी संख्या में दीपक , मोमबत्तियां और विद्युत बल्ब जलाए जाते हैं । रात्रि के समय प्रत्येक घर में धूमधाम से धनधान्य की अधिष्ठात्री देवी महालक्ष्मी जी , विघ्न विनाशक , ऋद्धि - सिद्धि - दाता गणेशजी और विद्या एवं कला की देवी मातेश्वरी सरस्वती की पूजा - आराधना की जाती है । मिट्टी के बने लक्ष्मी - गणेश , सरस्वती और विभिन्न खिलौने एक स्थान पर सजाकर खील - बताशों तथा धूप - दीप से उनकी पूजा की जाती है । मूर्तियों के सम्मुख पूरी रात घी का दीपक जलाया जाता है और लगभग पूरी रात्रि ही आमोद - प्रमोद में गुजारी जाती है ।
लक्ष्मी पूजन का जहाँ तक धार्मिक दृष्टि का प्रश्न है आज पूरे दिन व्रत रखना चाहिए
और मध्यरात्रि में लक्ष्मी - पूजन के बाद ही भोजन करना चाहिए , परन्तु बहुत कम व्यक्ति ऐसा करते हैं । लक्ष्मी - गणेश के पूजन में अन्य सभी पूजन - सामग्री का प्रयोग तो करते ही हैं खील - बताशों का प्रयोग भी अनिवार्य रूप से किया जाता है । इसके साथ ही चांदी अथवा धातु के रुपयों का भी पूजन किया जाता है । मिट्टी के बड़े दीपक में मोटी बत्ती डालकर और उस पर कच्ची मिट्टी का सकोरा रखकर काजल बनाने की प्रथा भी है । जहां तक व्यावहारिकता का प्रश्न है ।महालक्ष्मीजी , गणेशजी और सरस्वतीजी के संयुक्त पूजन के बावजूद इस पूजा में त्यौहार का उल्लास ही अधिक रहता है ।
ब्रह्मपुराण के अनुसार कार्तिक अमावस्या की इस अंधेरी रात्रि में महालक्ष्मीजी स्वयं भूलोक में आती हैं और प्रत्येक सद्गृहस्थ के घर कुछ क्षण के लिए रुकती हैं । जो घर हर प्रकार से स्वच्छ , शुद्ध , सुन्दर तरीके से सुसज्जित और प्रकाशयुक्त होता है , वहां अंश रूप में ठहर जाती हैं और गन्दे स्थानों की ओर पलटकर भी नहीं देखतीं । इसीलिए आज घर - दुकान सजाकर लक्ष्मी जी की आराधना की जाती है ।कि वह हमारे यहाँ वास करें । इस उत्सव को मनाए जाने का एक अन्य कारण यह भी है कि आज के दिन ही लंका विजय के उपरान्त भगवान् राम अयोध्या वापस आए थे महावीर स्वामी और महर्षि दयानन्द सरस्वती ने आज के दिन ही निर्वाण प्राप्त किया था । यही कारण है कि आर्य समाजी और जैन बन्धु भी विशेष उत्सव के रूप में मनाते हैं आज के दिन को ।
लक्ष्मी पूजन विशेष कर सायं में वृष ,सिंह ,वृश्चिक, कुम्भ स्थिर लग्न में किया जाता है । जिससे हमारे कार्य व्यापार में स्थिरता बनी रहे। माँ महालक्ष्मी का आशीर्वाद व प्रसन्नता के लिए कमल पुष्पों से अर्चन व वेलपत्र व कमल बीज से हवन का भी विधान है।
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पंडितजी बहुत बहुत धन्यवाद, आप को कोटि कोरी pranaam
जवाब देंहटाएंदिवाली से संबंधित बहुत सुंदर जानकारी दी है आपने आपका बहुत-बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत धन्यवाद आपका पंडित जी जानकारी देने के लिए।
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