शुक्रवार, 6 नवंबर 2020

धनतेरस और धन्वंतरि जयन्ती

धनतेरस और धन्वन्तरि जयन्ती

( कार्तिक कृष्णा त्रयोदशी )

हमारे देश मे सर्वाधिक धूमधाम से मनाए जाने वाले त्यौहार दीपावली का व्यवहारिक रूप में उत्सव प्रारम्भ हो जाता है धनतेरस से दीपावली के लिए विविध वस्तुओं की खरीदारी आज की जाती है । अपनी सामर्थ्यानुसार नए बर्तन , दीपावली पूजन हेतु लक्ष्मी - गणेश , खिलौने , खील - बताशे आदि तो अधिकांश व्यक्ति आज खरीदते हैं ।सुविधा होने पर सोने चांदी के जेवर भी खरीदे जाते हैं । घरों में दीपावली की सजावट भी आज से प्रारम्भ हो जाती है। और हर तरफ माहौल दीपावली मय हो जाता है । लोकाचार में तो आज के दिन का अत्यधिक महत्व है ।

धार्मिक और ऐतिहासिक दृष्टि से भी विशेष महत्व है ।इस तिथि को आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति के जन्मदाता धन्वन्तरिजी का आज जन्म हुआ था। अतः वैद्य - हकीम और ब्राह्मण समाज आज धन्वन्तरि जयन्ती मनाता है ।

जहां तक धर्म का प्रश्न हैं , पूरे वर्ष में एक मात्र यही वह दिन है जब मृत्यु के देवता यमराज की पूजा की जाती है ।  यह पूजा रात्रि होते समय यमराज के निमित एक दीपक जलाया जाता है । जम दीवा अर्थात यमराज का दीपक कहा जाता है इस दीप को धार्मिक विधान के अनुसार तो घर के बाहर एक ढेर के रूप में अनाज रखकर उसके ऊपर मिट्टी का पर्याप्त बड़ा दीपक रखना चाहिए । इसमें नई रूई की बत्ती डालकर तिल का तेल भर दें । दीपक की बत्ती दक्षिण दिशा की ओर रखें और रात्रि भर जलता रखें इस दीपक को, समय - समय पर तेल डालते रहें और बुझने न दें । जहां तक लोकाचार का प्रश्न है मिट्टी के दिवे में फूटी कोड़ी भी डाली जाती है । घर के बाहर दक्षिण की ओर बत्ती करके इस दीपक को रखने के बाद जला देते हैं । जब तक तेल जलता रहता है , इस दीपक की बुझने से रक्षा करते हैं और जब बत्ती जलने लगती है तब दिया से कोड़ी घर में उठा लाते हैं और दीपक को वहीं छोड़ आते हैं । परन्तु जहाँ तक व्यावहारिकता का प्रश्न है आजकल तो एक दीपक जलाकर यमराज के निमित्त घर के बाहर रख दिया जाता है , बाद में उस ओर देखते तक नहीं ।

आप दीपक किसी भी प्रकार जलाये प्रश्न आपकी आस्था का है।आज के दिन यम के नाम का दिया लगाने से कभी परिवार जनों की अकाल मृत्यु नही होती है।

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