सोमवार, 30 दिसंबर 2024

प्रयागराज महाकुंभ पर्व २०२५

प्रयागराज में महाकुंभ पर्व 2025--

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मकरे च दीवानाथे वृष राशि गाते गुरौ ।

प्रयागे कुंभयोगौं वैं माघमासे विधुक्षये ।।


प्रयागराज में महाकुंभ पर्व प्रत्येक बारह वर्ष पर प्रयाग में महाकुंभ पर्व मनाने की परंपरा है जब सूर्य एवं चंद्रमा मकर राशि में होते हैं और अमावस्या होती है तथा मेष अथवा बृहस्पति होते हैं।

तब प्रयाग में कुंभ महापर्व का होता है।


इस वर्ष संवत २०८१ शाके १९४६ में माघ कृष्ण पक्ष अमावस्या बुधवार दिनांक २९ जनवरी २०२५ ई को महाकुंभ का योग हो रहा है

इस दिन प्रयाग में मुख्यस्नान होगा । तदनुसार महाकुंभ के मुख्य प्रमुख स्नान का विवरण


प्रथम शाही स्नान --

माघ कृष्ण पक्ष प्रतिपदा तिथि मंगलवार १४.१.२०२५ को मकर संक्रांति पर ।


द्वितीय शाही स्नान --

(मुख्य स्नान) माघ कृष्ण पक्ष अमावस्या बुधवार २९.०१.२०२५ को मौनी अमावस्या पर।


तृतीया शाही स्नान --

माघ शुक्ल पक्ष पंचमी सोमवार ०३ फरवरी २०२५ को बसंत पंचमी पर होगा ।


इसके अतिरिक्त १३ जनवरी २०२५ सोमवार को और पौष शुक्ला पूर्णिमा पर ।

दूसरा ०४ फरवरी २०२५ मंगलवार को अचला सप्तमी पर ।

१२ फरवरी २०२५ बुधवार को माघ शुक्ल पूर्णिमा तथा ।

फाल्गुन कृष्ण पक्ष त्रयोदशी बुधवार २६ फरवरी २०२५ को महाशिवरात्रि पर भी स्नान होगा।

गुरुवार, 7 नवंबर 2024

खंड सूर्यग्रहण 21 सितंबर 2025

खंड सूर्यग्रहण --

खंड सूर्यग्रहण आश्विन मास के अमावस्या रविवार 21 सितंबर 2025 को लगने वाला खंड सूर्यग्रहण भारत में दृश्य नहीं होगा ।

कंकणाकृति सूर्यग्रहण 17 फरवरी 2026

सूर्य ग्रहण  फाल्गुन कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि मंगलवार 17 फरवरी 2026 को लगने वाला कंकणाकृति सूर्य ग्रहण भारत में दृश्य नहीं होगा ।

ग्रस्तोदित चंद्रग्रहण 3 मार्च 2026

चंद्रग्रहण फाल्गुन शुक्लपक्ष मंगलवार 3 मार्च 2026 को लगने वाला खग्रास चंद्रग्रहण है । 

यह खग्रास चंद्र ग्रहण भारत में ग्रस्तोदित खग्रास चंद्रग्रहण के रूप में भारत में दृश्य होगा।

भारतीय मानक समयानुसार ग्रहण का प्रारंभ दिन में 3:20 पर होगा ।

ग्रहण मध्य, मध्य 5:04 पर ।

ग्रहण मोक्ष ,मोक्ष 6:47 पर होगा ।

यह ग्रहण भारत के पूर्वी भाग में दृश्यहोगा । अन्य क्षेत्रों में नहीं दिखाई देगा।

दीपावली पूजन निर्णय 2025

दीपावली पूजन का शुभ मुहूर्त 2025


दीपों का त्योहार खुशियां मिले हजार ।

दीप सजाओ  लक्ष्मी की कृपा बरसे अपार ।।


दीपावली का त्योहार भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्व में बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है। दीपावली का यह पर्व प्रत्येक वर्ष कार्तिक कृष्ण अमावस्या तिथि पर मनाया जाता है।

प्रदोष काल ,निशा व्यापनी अमावस्या तिथि, स्थिर लग्न पर दीपावली लक्ष्मी पूजन करने से धन-धान्य की वृद्धि ,व्यापार मे नित्य उत्तरोत्तर वृद्धि होती है।

दीपावली तिथि --


20 अक्टूबर 2025 को दीपावली का शुभ पर्व मनाया जाएगा। 

20 अक्टूबर 2025 सोमवार को 2:56 पर अमावस्या लगेगी। दूसरे दिन 21 अक्टूबर 2025 मंगलवार को 4:26 तक अमावस्या रहेगी।

दीपावली मुहूर्त --

वृषभ लग्न -- सायं 7:10 से रात्रि 9:06 तक है जो दीपावली के लिए उत्तम समय माना जाता है। 

सिंह लग्न --अर्धरात्रि 1:38 से 3:52 तक सिंह लग्न रहेगा।

कुंभ लग्न -- कुंभ लग्न दिन में 2: 56 से दिन में 4:05 के मध्य तक रहेगा।

खग्रास चंद्रग्रहण (7 सितंबर2025)

श्री संवत 2082 सन 2025 में लगने वाला साल का पहला चंद्रग्रहण 

यह चंद्रग्रहण भाद्रपद पूर्णिमा तिथि रविवार 7 सितंबर 2025 को लगने वाला खग्रास चंद्र ग्रहण है । यह ग्रहण भारत मैं दिखाई देगा ।

यह चंद्रग्रहण भारत के सभी भागों में दिखाई देगा । शुरू से लेकर अंतिम तक या ग्रहण दिखाई देगा 

ग्रहण समय-- 

भारत में यह ग्रहण भारतीय समय के अनुसार ग्रहण का प्रारंभ रात्रि 9:57 पर शुरू होगा।

ग्रहण मध्य, मध्य रात्रि 11:41 पर

ग्रहण मोक्ष रात्रि 1:27 पर होगा ग्रहण का स्पर्श ,मध्य, मोक्ष पूरे भारत में दिखाई देगा ।

ग्रहण फल-- 

यह ग्रहण मिथुन ,कर्क ,सिंह ,तुला ,वृश्चिक ,मकर ,कुंभ ,मीन राशि वालों के लिए कष्टकारी होने वाला है।

ग्रहण सवधानी --

जिन राशियों के लिए ग्रहण भारी होने वाला है उन्हें चंद्र ग्रहण का दर्शन नहीं करना चहिए ।


जो बहने पेट से हैं उन्हें भी यह ग्रहण का दर्शन नहीं करना चाहिए ।


ग्रहण काल मे भोजन पानी का निषेध करें ।

ग्रहण काल मे हरिनाम संकीर्तन करें । 

जप दान करें।

गंगा स्नान करें ।

विशेष -- 

ग्रहण काल में किया गया जब और दान अक्षय पुण्य देने वाला सिद्धि देने वाला होता है।


शनिवार, 26 अक्टूबर 2024

दीपावाली निर्णय - 2024

🚩दीपावली - निर्णय 🚩 


पद्मानने_पद्मिनि_पद्मपत्रे_पद्मप्रिये_पद्मदलायताक्षि।

विश्वप्रिये_विश्वमनोऽनुकूले_त्वत्पादपद्मं_मयि_सन्निधत्स्व ।।


दीपावली दीपों का मुख्य त्योहार है । दीप माला का पूजन होता है । दीपावाली पर निशा काल में अमावस्या का महत्व लक्ष्मी पूजा से होता है । यह अमावस्या साधक विद्वान तंत्र मंत्र पूजा पाठ करने वालों के लिए विशेष महत्व रखता है ।



कार्तिक अमावस्या तिथि 31 अक्टूबर 2024, गुरुवार को 03 बजकर 12 मिनट के बाद से शुरू होकर अगले दिन 01 नवंबर 2024 शुक्रवार को 5 बजकर 13 बजे तक अमावस्या रहेगी। 


श्री काशी विश्वनाथ ऋषिकेश पंचांग के तद्नुसार।


अमावस्या की रात की बात हुई तो ये 31 अक्टूबर को ही मिल रही है।


इस हिसाब से दीपावली 31 अक्टूबर के दिन  ही मनाई जाएगी।


लक्ष्मी पूजा संध्या व रात्रि वेला के वृष , सिंह , कुंभ लग्न के समय में मनाई जाती है ।


काशी के विद्वानों ने भी इसी मुहूर्त को शास्त्र सम्मत माना है ।

🚩लक्ष्मी पूजन मुहूर्त - 

1- वृषभ राशि स्थिर लग्न समय - 06:23 सायं से 08:19 रात्रि तक रहेगा ।

2- सिंह राशि स्थिर लग्न समय मध्यरात्रि - 12:51 से 03:05  तक है ।

🚩चौघड़िया -

शुभ- 04:39 pm से 06:04 pm 


अमृत - 06:04 pm से 07:39 pm 


लाभ - 12:22 am से 01:57 am अंग्रेजी 1 नवंबर




🚩सत्य सनातन धर्म की जय🚩



सोमवार, 16 सितंबर 2024

चंद्र ग्रहण व सूर्यग्रहण पर निर्णय2024-25

 

   श्री संवत 2081 में चार ग्रहण लगने वाले हैं। जिसमें दो चंद्र ग्रहण व दो सूर्यग्रहण है । किंतु भारत वर्ष में कोई भी ग्रहण दृश्य नहीं होगा।

 1-  पहला ग्रहण चंद्रग्रहण जो पूर्णिमा बुधवार 18 सितंबर 2024 को लगने वाला खंड चंद्रग्रहण भारत में दृश्य नहीं होगा । यह ग्रहण का समय भारतीय मानक समय के अनुसार ग्रहण का प्रारंभ 7:42 AM वह मोक्ष 8: 47 AM पर होगा ।

2- दूसरा सूर्य ग्रहण आश्विन कृष्णपक्ष 2 अक्टूबर2024 को लगने वाला कंकणाकृति ग्रहण पूरे भारत में दृश्य नहीं होगा। ग्रहण का प्रारंभ भारतीय समय के अनुसार रात्रि 9:13 PM पर तथा मोक्ष 3:17 AM पर होगा।

3- तीसरा ग्रहण चंद्रग्रहण जो फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि 14 मार्च 2025 को लगने वाला खग्रास चंद्रग्रहण है। जो भारत में दृश्य नहीं होगा । ग्रहण का प्रारंभ भारतीय समय 10:39 PM पर तथा मोक्ष 2:18 AM पर होगा।

4- चौथा ग्रहण सूर्यग्रहण चैत्र अमावस्या शनिवार 29 मार्च 2025 को लगने वाला खंड सूर्य ग्रहण भारत में दृश्य नहीं होगा। ग्रहण का समय भारतीय समयानुसार 2:21 PM तथा मोक्ष 6:14 PM सायं पर होगा।

सोमवार, 26 अगस्त 2024

श्री राधा कृष्ण मंदिर बसई स्याल्दे अल्मोड़ा

।।श्रीराधा कृष्ण मंदिर बसई का इतिहास ।।

वसुदेव सुतं  देवं , कंस चाणूर मर्दनं।

देवकी परमानन्दं ,कृष्णं वन्दे जगदगुरूम्।।


श्री कृष्ण गोबिन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वासुदेव।  

हे नाथ नारायण वासुदेव    हे नाथ नारायण वासुदेव ।।


श्री राधा कृष्ण मंदिर बसई का निर्माण सन १९५० दशक के आस पास बताया जाता है । इस का निर्माण बसई ग्राम सभा के मूलनिवासी स्वर्गीय श्रीमान भवान सिंह मेहरा जी के कर कमलों द्वारा मंदिर निर्माण व मूर्ति प्रतिष्ठा किया गया ।

जिसका देखरेख पूजा पाठ बसई ग्राम सभा के लोगों द्वारा संचालित किया जाता था । कालांतर में कुछ लोगों द्वारा प्राचीन श्री राधा कृष्ण मंदिर को तोड़कर नया मंदिर बनाया गया ।

प्राचीन धरोहर श्रीराधा कृष्ण मंदिर बसई के सारे साक्ष्य हटा दिए गए ।पुराने मंदिर पर कुछ शिलालेख थे । जो आज कही दिखाई नही देते। जिससे जन मानुष में काफी आक्रोश देखने को मिला ।


सन १९९४ के दशक में श्री राधा कृष्ण मंदिर का निर्माण पुनः किया गया । जिसमे ग्राम सभा बसई व समस्त क्षेत्र वासियों का योगदान सराहनीय है। 



नए मंदिर में श्रीमान गोविंद वल्लभ लखेड़ा जी के द्वारा माता पिता की याद में श्री राधा कृष्ण भगवान की मूर्ति स्थापित कि गई।

यह श्री राधा कृष्ण मंदिर सभी मानव समाज के कल्याण हेतु समर्पित है । 

  ।।जय श्री राधे कृष्णा।।  

शनिवार, 27 जुलाई 2024

ब्राह्मण कौन है ।

        ।। ब्राह्मण कौन है ।।

ब्राह्मण जो ब्रह्म का ज्ञान रखता है । वह ब्राह्मण है ।

जो सृष्टि का ज्ञान रखता है । वह ब्राह्मण है ।

जो वेदों का ज्ञान रखता है । वह ब्राह्मण है ।

जो पुराणों का ज्ञान रखता है। वह ब्रह्मण है।

जो नियमों पर चलता है । वह ब्राह्मण है ।

जिसके पास ज्ञान का भंडार है । वह ब्राह्मण है ।

जो समाज को ज्ञान देने का काम करता है । वह ब्राह्मण है ।

जो समाज को जीने की कला सिखाता है। वह ब्राह्मण है ।

जो गुरु परंपरा पर चलता है । वह ब्राह्मण है ।

वेद, पुराण उपनिषद ,ज्योतिष वास्तु आयुर्वेद सनातन संस्कृति संस्कारों की रक्षा करने वाला,वह है ब्राह्मण ।


अपनी परम्पराओं ज्ञान देना वाला है । ब्राह्मण।

जिससे देवता भी डरते है । वह है ब्राह्मण ।




सनातन को जिंदा रखने वाला वह ब्राह्मण है ।


नाम सुनकर ऐसा लगता है जैसे कोई दीनहीन होगा । लोगों की भावना ब्राह्मण नाम सुनकर परिवर्तित हो जाती है । कई लोग तो आदर करते हैं, और कई लोग तिरस्कार भी करते हैं।

पृथ्वी में जितने भी तीर्थ पवित्र नदियां है , वे सभी समुद्र में मिलते है । और समुद्र के सारे तीर्थ ब्राह्मण के दाहिने पैर में बसते है ।


देवाधीनं जगत्सर्वं मंत्राधीनाश्च  देवता:।

तेमंत्रा: ब्राह्मणाधिना: तस्मात् ब्राह्मण देवता: । ।


सारा संसार देवताओं के अधीन है । और देवता मन्त्रों के अधीन है । मंत्र ब्राह्मण के अधीन है । इस लिए इस वसुंधरा के ब्राह्मण ही देवता है ।


ब्राह्मण कि यारी ,शेर की सवारी 

जिसने ब्राह्मण को मित्र बना लिया समझो उसने शेर कि सवारी कर ली । 

जय ब्राह्मण देवता ।



शुक्रवार, 26 जुलाई 2024

रुद्राभिषेक व शिवपूजन पदार्थ जिससे अनिष्ट का नाश होता है

शिवलिंग पर अक्सर जल और बिल्वपत्र तो चढ़ाया ही जाता है लेकिन इसके अलावा भी बहुत कुछ अर्पित किया जाता है। शिवजी का कई प्रकार के द्रव्यों से अभिषेक किया जाता है। सभी तरह के अभिषेक का अलग-अलग फल दिया गया है। शिव पुराण के अनुसार किस द्रव्य से अभिषेक करने से क्या फल मिलता है? जानिए-

श्लोक :-

जलेन वृष्टिमाप्नोति व्याधिशांत्यै कुशोदकै।

दध्ना च पशुकामाय श्रिया इक्षुरसेन वै।।

मध्वाज्येन धनार्थी स्यान्मुमुक्षुस्तीर्थवारिणा।

पुत्रार्थी पुत्रमाप्नोति पयसा चाभिषेचनात।।

बन्ध्या वा काकबंध्या वा मृतवत्सा यांगना।

ज्वरप्रकोपशांत्यर्थम् जलधारा शिवप्रिया।।

घृतधारा शिवे कार्या यावन्मन्त्रसहस्त्रकम्।

तदा वंशस्यविस्तारो जायते नात्र संशय:।।

प्रमेह रोग शांत्यर्थम् प्राप्नुयात मान्सेप्सितम।

केवलं दुग्धधारा च वदा कार्या विशेषत:।।

शर्करा मिश्रिता तत्र यदा बुद्धिर्जडा भवेत्।

श्रेष्ठा बुद्धिर्भवेत्तस्य कृपया शङ्करस्य च।।

सार्षपेनैव तैलेन शत्रुनाशो भवेदिह।

पापक्षयार्थी मधुना निर्व्याधि: सर्पिषा तथा।।

जीवनार्थी तू पयसा श्रीकामीक्षुरसेन वै।

पुत्रार्थी शर्करायास्तु रसेनार्चेतिछवं तथा।।

महलिंगाभिषेकेन सुप्रीत: शंकरो मुदा।

कुर्याद्विधानं रुद्राणां यजुर्वेद्विनिर्मितम्।।

 

- जल से रुद्राभिषेक करने पर वृष्टि होती है।

- कुशा जल से अभिषेक करने पर रोग व दु:ख से छुटकारा मिलता है।

- दही से अभिषेक करने पर पशु, भवन तथा वाहन की प्राप्ति होती है।

- गन्ने के रस से अभिषेक करने पर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

- मधुयुक्त जल से अभिषेक करने पर धनवृद्धि होती है।

- तीर्थ जल से अभिषेक करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।

- इत्र मिले जल से अभिषेक करने से रोग नष्ट होते हैं।

- दूध से अभिषेक करने से पुत्र प्राप्ति होगी। प्रमेह रोग की शांति तथा मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं

 - गंगा जल से अभिषेक करने से ज्वर ठीक हो जाता है।

- दूध-शर्करा मिश्रित अभिषेक करने से सद्बुद्धि की प्राप्ति होती है।

- घी से अभिषेक करने से वंश विस्तार होता है।

- सरसों के तेल से अभिषेक करने से रोग तथा शत्रुओं का नाश होता है।

- शुद्ध शहद से रुद्राभिषेक करने से पाप क्षय होते हैं। इसके अलावा

1. शिवलिंग पर कच्चे चावल चढ़ाने से धन-संपत्ति की प्राप्ति होती है।

2. तिल चढ़ाने से समस्त पापों का नाश होता है।

3. शिवलिंग पर जौ चढ़ाने से लंबे समय से चली रही परेशानी दूर होती है।

4. शिवलिंग पर गेहूं चढ़ाने से सुयोग्य पुत्र की प्राप्ति होती है।

5. शिवलिंग पर जल चढ़ाने से परिवार के किसी सदस्य का तेज बुखार कम हो जाने की मान्यता है।

6. शिवलिंग पर दूध में चीनी मिलाकर चढ़ाने से बच्चों का मस्तिष्क तेज होता है।

7. शिवलिंग पर गन्ने का रस चढ़ाने से सभी सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है।

8. शिवलिंग पर गंगा जल चढ़ाने से मनुष्य को भौतिक सुखों के साथ-साथ मोक्ष की प्राप्ति भी होती है।

9. शिवलिंग पर शहद अर्पित करना करने से टीबी या मधुमेह की समस्या में राहत मिलती है।

10. शिवलिंग पर गाय के दूध से बना शुद्ध देसी घी चढ़ाने से शारीरिक दुर्बलता से मुक्ति मिलती है।

11. शिवलिंग पर आंकड़े के फूल चढ़ाने से सांसारिक बाधाओं से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

12. शिवलिंग पर शमी के पेड़ के पत्तों को चढ़ाने से सभी तरह के दु:खों से मुक्ति प्राप्त होती है।

उपरोक्त कार्य सोमवार, त्रयोदशी, शिवरात्रि या श्रावण के मास में नित्य करेंगे, तो लाभ मिलेगा।

भगवान शिव के रुद्राभिषेक से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। साथ ही, ग्रह जनित दोषों व रोगों से भी मुक्ति मिल जाती है। 

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आचार्य हरीश लखेड़ा 

शनिवार, 20 जुलाई 2024

मेरी शादी कब होगी

विवाह संस्कार जीवन का पवित्र बंधन माना जाता है । कभी न टूटने वाला बंधन । संसार के उत्सर्जन गृहस्थ जीवन के द्वारा अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाना , संसार के गतिविधियों को आगे बढ़ना , संसार की गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए प्रथम आवश्यक होता है संतान उत्पत्ति , यहीं से पुरुष की अपनी जिम्मेदारी के साथ अपने परिवार के साथ जीवन निर्वाह करता है । गृहस्थ जीवन में बहुत सारी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । किंतु आनंद भी गृहस्थ जीवन में ही है । जहां मनुष्य सभी प्रकार भोगों का आनंद प्राप्त करता है । साथ में  भजन भी होता रहता है । सबसे बड़ी तपस्या गृहस्थ जीवन में ही होती है । जहां मनुष्य को हर द्वार से गुजरना पड़ता होता है। विशेष कर के जीवन में हमे अपनी साख को बचा के रखना होता है । जो निरन्तर वंशवाद के द्वारा हम आगे बढ़ाते रहते है । शदियों तक चलता रहता है ।


अब लगता है। यह सब टूट जाएगा और टूट रहा है । जात पात सिर्फ नाम का होगा । नाम के ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शुद्ध रह जाएंगे ।  

बहुत सारे परिवार ऐसे हैं जिनकी लड़कियों ने प्रेम विवाह करके दूसरे समाज में चली गई है । और अपने लड़के के लिए उन्हें बहू अपनी जात धर्म कि चाहिए , तो संतुलन कैसे बनेगा । समाज के सभी विद्वानों ने इस पर गहन चिंतन करना चाहिए और सभी माता-पिता ने भी इस पर विचार करना । आज अपने समाज में देखें बहुत सारे युवा, युवती बिना शादी के घर बैठे है


 आज प्रेम विवाह का समय चल रहा है । यह ठीक नहीं है ।जो समाज के लिए दीमक का काम कर रहा है । ऐसा ही रहा तो आने वाले समय में आपको जानने वाले , आपकी पहचान क्या है , आपकी सभ्यता क्या है ,आपकी प्रथाएं क्या है ,आपकी कुल परम्परा यह सब समाप्त होती जाएगी। देव ,पितृ सब लुप्त हो जाएंगे । 

आज के समय में बहुत से परिवारों के यहां एक से दूसरा बच्चा नहीं दिखाई देता । यहां पर देखा जाय तो दो में से एक परिवार वैसे ही लुप्त हो जाता है । यहां पर आपका धर्म सीमित ,परिवार सीमित , बच्चे सीमित हो जाते हैं । क्या पाया , क्या खोया ।

आज के समय में बच्चों के विवाह के लिए बहुत ही परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है । आज आप एक लड़के की कुंडली पर सौ लड़कियों की कुंडली जुड़ा दीजिए  फिर भी बात नहीं बनती । आज के युवा 35 , 40 के ऊपर आ जाते है तब विवाह हो रहा है। कई कई परिवार बहुत परेशान है। 

समाज अगर ऐसा ही चला रहा आने वाले समय में क्या होने वाला है कोई नहीं जनता इतना जरूर है समाज की व्यवस्थाएं  जरूर चरमरा जाएगी । 



🚩।।सत्य सनातन अखंड धर्म जय।।🚩
पंडित हरीश चंद्र लखेड़ा 
ज्योतिषाचार्य

रविवार, 14 जुलाई 2024

वर्ण संकर

वर्ण संकर 

वर्ण संकर किसे कहते हैं । मां की अन्य जात हो, पिता किसी अन्य जात का हो इन दोनों के संयोग से जो संतान उत्पन्न होती है । उसे वर्ण संकर कहा जाता है । वर्ण संकर संतान के द्वारा किए जान वाले सभी धार्मिक कार्यों में सिद्धि नहीं मिलती और पितरों को दिया हुआ अन्नदान जल दान भी किसी काम नहीं आता । और २१ पीढ़ी के पितृ नरक को भोगते हैं ।


गीता में कहा गया है :- 


गीता के प्रथम अध्याय मैं वर्णित है ।


कुलक्षये प्रणश्यन्ति  कुल धर्मा: सनातना:।

धर्मे नष्टे  कुलं कृत्स्नमधर्मोभिभवत्युत ।।

कुल के नाश से कुल धर्म नष्ट हो जाते है जिससे संपूर्ण कुल में पाप फैल जाता है ।


अधर्माभि भवात्कृष्ण प्रदुष्यंती कुलस्त्रिय: ।

स्त्रीषु दुष्टासु  वार्ष्णेय  जयते  वर्णसंकरः ।।


अत्यंत पाप बढ़ जाने पर कुल की स्त्रियां अत्यंत दूषित हो जाती है और इससे वर्ण संकर संताने होती हैं ।


सन्क नरकायैव कुलघ्नानां कुलस्य च ।

पतन्ति पितरों ह्येषां लुप्त पिण्डोदक क्रिया: ।।


वर्ण संकर कुल को नर्क में ले जाता है और श्रद्धा एवं तर्पण से वंचित इनके पितर लोग भी अधोगति को प्राप्त होते हैं ।



दोषैरेतै:  कुलघ्नानां वर्ण संकर कारकै:।

उत्साद्यन्ते जाति धर्मा कुलधर्मान्च शाश्वता: ।।

इस प्रकार वर्ण संकर कारक दोषों से कुल घातियों के सनातन कुल धर्म और जाति धर्म नष्ट हो जाते हैं ।

जिसका कुल धर्म नष्ट हो जाता है उसका अनिश्चितकाल तक नरक में वास होता है ।

हम लोग बुद्धिमान होकर भी महान पाप करने को तैयार हो गये हैं ।

अपना धन अपना राज्य अपना सुख पाने के लिए हम अपनों को ही करने के लिए  उद्यत हो रहे हैं ।

बुधवार, 8 मई 2024

श्री राधा कृष्ण विवाह प्रसंग

🌹श्री राधा कृष्ण विवाह प्रसंग 🌹

गर्ग संहिता के गोलोक खंड में यह वर्णन मिलता है, कि भांडीर वन में नंद जी के द्वारा श्रीराधा कि स्तुति, श्रीराधा और श्रीकृष्ण का विवाह ब्रह्मा द्वारा संपन्न किया गया ।

नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमं । 

देवी ं सरस्वतीं व्यासं ततो जयमुदीरयेत्।।

श्री नारद जी कहते हैं-- 

राजन ! एक दिन नन्द जी अपने नंद नंदन को अंक में लेकर लाड लड़ते और  गाय चराते हुए बहुत दूर निकल गए धीरे-धीरे भांडीर वन में जा पहुंचे जो कालिंदी नदी का स्पर्श करके बहाने वाले शीतल समीर के झोखे से कंपित हो रहा था। थोड़ी ही देर में श्रीकृष्ण की इच्छा से वायु का वेग अत्यंत प्रखर हो उठा । वृक्षों के पल्लव टूट कर नीचे गिरने लगे, चारों ओर अंधकार छा गया। नंदनंदन रोने लगे वह पिता की गोद में भयभीत दिखाई देने लगे। नंद बाबा के मन में भी भय हो गया। वह शिशु को गोद में लेकर श्री हरि को याद करने लगे।

उसी क्षण करोड़ सूर्यों के समूह की सी दिव्य दीप्ति उदित हुई। जो संपूर्ण दिशाओं में व्याप्त थी। वह निकट आई सी जान पड़ी। उसे दीप्ति राशि के भीतर राजा ने वृषभानुनंदिनी श्रीराधा को देखा ,वह करोड़ों चंद्र मंडलों की कांति धारण किए हुए थी। नंदबाबा ने राधा जी की स्तुति की मस्तक झुकाकर हाथ जोड़कर प्रणाम किया । 

कहा - राधे यह साक्षात पुरुषोत्तम है । और तुम उनकी मुख्य प्राण बल्लभा हो। मैं यह गुप्त रहस्य गर्ग जी मुख से सुनकर जानता हूं ।

राधे आप अपने प्राण नाथ को मेरे अंक से ले लो । यह बादलों की गर्जना से डर गए है ।

श्रीनंद जी कहते हैं -- 

राधे तुमने मुझे दर्शन दिए वास्तव में तुम सब लोगों के लिए दुर्लभ हो।

श्री राधा ने कहा --

नंद जी तुम ठीक रहते हो। मेरा दर्शन दुर्लभ ही है । आज तुम्हारे भक्ति भाव से प्रसन्न होकर ही मैंने तुम्हें दर्शन दिया है ।

श्रीनारद जी कहते हैं--

राजन !तब तथास्तु कहकर श्री राधा ने नंद जी की गोद से अपने प्राणनाथ को दोनों हाथों में ले लिया। फिर नंदबाबा वहां से चले । तब राधाजी भांडीर वन में चली गई ।

पहले गोलोक से पृथ्वी देवी इस भूतल पर उतरी थी ।

वे अपना दिव्य रूप धारण करके प्रकट हुई। उक्त धाम में जिस तरह पद्मराग मणियों से जटित सुवर्णमयी भूमि शोभा पाती है, इस तरह इस भूतल पर भी ब्रजमंडल उस दिव्य रूप भूमिका तत्क्षण अपने संपूर्ण रूप में आविर्भाव हो गया ।

वृंदावन काम पूरक दिव्य वृक्षों के साथ अपना दिव्य रूप धारण  करके शोभा पाने लगा।

दिव्या धाम की शोभा का अवतरण होते ही साक्षात पुरुषोत्तम घनश्याम भगवान श्रीकृष्णा किशोरावस्था के अनुरूप दिव्य रूप धारण करके श्री राधा के सम्मुख खड़े हो गए उनके अंगों पर पीतांबर शोभा पा रहा था।  कौस्तुभ मणि से विभूषित थे। हाथोंमें वंशी धारण किए हुए , मन को मोहित कर रहे थे।

सिंहासन पर विराजमान होकर एक दूसरे को परस्पर देखते हुए सिंहासन पर विराजित हो गए । अपनी दिव्य शोभा का प्रसार करने लगे ,एक दूसरे को मीठी मीठी बाते बोलने लगे ।

इसी समय देवताओं में श्रेष्ठ विधाता भगवान ब्रह्मा आकाश से उतरकर परमात्मा श्री कृष्ण के समक्ष आए और उन दोनों के चरणों में नमस्कार हाथ जोड़कर कमनीय वाणी द्वारा चारों मुखों से मनोहर स्तुति करने लगे।

श्री ब्रह्माजी बोले--

प्रभु आप सबके आदि कारण हैं, किंतु आपका कोई आदि अंत नहीं है, आप समस्त पुरुषोत्तम में उत्तम है ,आप सदा अपने भक्तों में वात्सल्य भाव रखना वाले श्री कृष्ण नाम से विख्यात हैं। 

श्रीनारद जी कहते हैं--

राजन ! इस प्रकार स्तुति करके ब्रह्मा जी ने उठकर कुंड में  अग्नि प्रज्वलित कि और अग्निदेव के सम्मुख बैठे हुए प्रिया प्रियतम के वैदिक विधि विधान से पाणीग्रहण संस्कार की विधि पूरी की।

यह सब करके ब्रह्मा जी ने खड़े होकर श्री हरी और श्री राधा जी से अग्नि देव की सात परिक्रमा करवाई। विधाता ने उन्हें सात वचन कहे और  हृदयालंबन करवाया और इसके बाद श्रीराधा जी ने भगवान श्री कृष्ण को पुष्प की माला पहनाई और फिर भगवान श्री कृष्ण ने श्रीराधाजी को पुष्प का हार पहनाया ब्रह्मा जी ने दोनों से अग्निदेव को प्रणाम करवाया। इस प्रकार उन्होंने राधा जी को श्री कृष्ण के हाथ में सौंप दिया। 

आकाश मंडल से पुष्पों की वर्षा होने लगी गंधर्व किन्नरों ने मधुर स्वर से श्रीराधा कृष्ण युगल छवि के लिए शुभ मंगल गान किया, मृदंग, वीणा, शंख ,वेणु ,ढोल नगाड़े , करताल, आदि बाजे बजने लगे । आकाश मंडल में खड़े हुए श्रेष्ठ देवी देवताओं ने मंगल शब्द का उच्च स्वर से उच्चारण करते हुए बारंबार जय जयकार  किया।

विवाह की मंगल बेला पर श्री हरि ने विधाता से कहा -- ब्राह्मण देव आप अपनी इच्छा के अनुसार अपनी दक्षिण बताइए , तब ब्रह्माजी ने श्री हरि से इस प्रकार कहा प्रभु मुझे अपने युगल चरणों की भक्ति ही दक्षिण के रूप में प्रदान कीजिए । श्री हरि ने तथास्तु कहकर के अभीष्ट वरदान दिया ।

इसके बाद ब्रह्मा जी ने श्री युगल चरणों को प्रणाम करके अपने स्वधाम को प्रस्थान किया ।

जय श्री राधे 
जय श्री कृष्णा 

सोमवार, 8 अप्रैल 2024

🕉️हिन्दू नव वर्ष नव संवत्सर २०८१

🕉️सनातन हिंदू नव वर्ष संवत् २०८१

ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।

दुर्गा क्षमा शिवाधात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते।।


सनातन हिंदू नववर्ष का प्रारंभ चैत्र मास के शुक्ल पक्ष प्रतिपदा वासंतिक नवरात्र से होता है। आज के दिन ब्रह्मा जी ने जगत की रचना की है।

अंग्रेजी तारीख ०९ अप्रैल २०२४ से सनातन नव वर्ष नव संवत्सर प्रारंभ होगा। 

नववर्ष के आगमन पर लोग अपने घर व देवस्थान को सुशोभित कर प्रथम दिन की शुरुवात देव पूजन से करते है । 

अपने कुलदेवी, कुलदेवता ,गुरु,अपने अग्रजों  से आशीर्वाद प्राप्त करते है । जिससे हमारा नया साल सुख शांति पूर्वक यापन हो, खुशियों से भरा हो ।

इसी दिन से घरों में नवरात्रि घट स्थापन,मातारानी की पूजा पाठ व्रत किए जाते है ।


नव संवत्सर फल --

इस वर्ष कालयुक्त नाम संवत्सर रहेगा । कालयुक्त संवत्सर में अन्न धन कि कमी नही होगी , प्रजा में आनंद का वातावरण रहेगा । वर्ष पर्यंत कालयुक्त नाम संवत्सर का ही विनियोग होगा। इस वर्ष राजा मंगल , मंत्री शनि है। राजा और मंत्री में मधुर मैत्री नही है। इसलिए परस्पर मतभेद की स्थिति बनी रहेगी। प्रजा सुखी होगी। शत्रु शांत रहेंगे, रोगों  में वृद्धि होगी। 


भारत के पड़ोसी देशों में प्राकृतिक आपदा, भूकम्प,आपसी टकराव , जन धन कि हानि होगी।यूरोपी देशों में मंदी की स्थिति बनेगी। 


राजनैतिक,आर्थिक ,व्यापारिक,शिक्षा कि दृष्टि में भारत विश्वगुरू कि राह पर अग्रसर रहेगा। कहीं - कहीं आतंकी गतिविधियां हो सकती हैं। वैज्ञानिक ज्ञान प्रतिभा का विश्व में प्रभाव बढेगा । वर्षा के सामान्य योग है । शारदीय फसलों पर प्रभाव पड़ेगा।


वर्ष अपैट --

मेष ,सिंह, धनु, राशि वालों जातकों को वर्ष अपैट है। मिथुन, तुला, कुंभ राशि वाले जातकों को प्रथम संक्रांति(वैशाखी) अपैट है। संक्रान्ति,पूर्णिमा पर दुर्गा सप्तशती का पाठ, सफेद वस्तु का दान करें।



विषुवतसंक्रांति फल--

विषुवत चक्र में जन्म नक्षत्र यदि 

सर भाग में हो तो यश प्राप्ति , 

मुंह भाग में हो तो विद्या प्राप्ति ,

हृदय भाग में हो तो धन लाभ , 

दाहिने हाथ में हो तो दांपत्य सुख,

बाएं हाथ में हो अर्थ अभाव ,

दाहिने पैर में हो निरर्थक भ्रमण , 

बाएं पैर में हो तो रोग आदि, 


वामपद दोष -- 

जिन जातकों का नक्षत्र आर्द्रा, पुनर्वसु , पुष्य है । उन्हें विषुवत संक्रांति वाम पाद में है ।  अरिष्ट निवृति के लिए  चांदी का पद, चावल ,दही,सफेद वस्त्र दान अर्चन श्रेयस्कर होगा ।



शनि साढ़ेसाती --

 इस बार वर्ष पर्यंत शनिदेव कुंभ राशि पर रहेंगे । 

अतः मकर ,कुंभ तथा मीन राशि वालों के लिए शनि की साढे साती का प्रभाव रहेगा । 

कर्क ,वृश्चिक राशि वालों के लिए शनि की ढैया चलेगी ।

शनि की साढेसाती मीन राशि वालों के लिए सिर पर रहने से कार्यो में देरी,अपव्यय ,अच्छे अवसर की हानि, स्वास्थ्य कमजोर होगा ।

कुंभ राशि वालों के लिए हृदय पर रहने से स्वास्थ्य में उतार चढ़ाव,आलस्य ,अरुचि ,पत्नी कष्ट , व्यापार में मंदी रहेगी।

मकर राशि वालों के लिए पैर पर माता पिता को कष्ट ,राज पक्ष प्रतिकूल रहेगा ।


उपाय --

जिस राशि वालों पर शनि की ढैया साडेसाती चल रही है । उन्हें सुंदरकांड रामायण तथा हनुमान चालीसा का नित्य पाठ शनि चालीसा का पाठ शनिवार का व्रत करना चाहिए । शनिवार को प्रातः पीपल वृक्ष में जल दान तथा सायं दीपदान करना चाहिए।

काले घोड़े की नाल की अंगूठी शनिवार को मध्यमा उंगली में धारण करना चाहिए।

शनिवार का व्रत तथा शनि का जप, होम, दान करना चाहिए।




      ।।जय शनिदेव।।


।।सबका कल्याण करना।।


🌹नववर्ष नव संवत्सर आप सभी को मंगलमय हो🌹


             🌹जय ईस्ट देव🌹

गुरुवार, 4 अप्रैल 2024

खग्रास सूर्यग्रहण 8 अप्रैल 2024

खग्रास सूर्यग्रहण--

साल २०२४ में लगने जा रहा है साल का पहला सूर्य ग्रहण और यह सूर्य ग्रहण चैत्र कृष्ण पक्ष अमावस्या सोमवार ८ अप्रैल २०२४ को लगने वाला है खग्रास सूर्य ग्रहण भारत में दृश्य नहीं होगा ।

यह ग्रहण उत्तरी अमेरिका मध्य अमेरिका ग्रीस लैंड आइसलैंड और प्रशांत महासागर उत्तरी अटलांटिक महासागर में दिखाई देगा भारतीय मानक समय अनुसार ग्रहण का प्रारंभ रात्रि में ०९:१२ पर तथा मोक्ष रात्रि में ०२:२२  पर होगा।


 सावधानी--

भारत में ग्रहण दृश्य नहीं होगा जिस कारण कोई भी सावधानी बरतने की आवश्यकता नहीं है ।

नित्य दिन चर्या कि तरह वैसा ही चलता रहेगा ।  

    ।। हर हर महादेव ।।

रविवार, 17 मार्च 2024

नामकरण नामाक्षर

नामकरण नामाक्षर
सनातन धर्म में जब कोई नवजात शिशु जन्म लेता है । तो जन्म से ११ वें दिन शिशु का नामकरण किया जाता है ।शिशु के दाहिने कान में शिशु का नाम पहिले पंडित जी सुनाते है । नक्षत्र चरण के आधार पर नामाक्षर देखा जाता है ।

लड़का                   लड़की

        अ,आ

अमिताभ                          अल्का
अमित                              अरुणा            
अनिल                              अभिलाषा
अम्बरीष                           अभिलेखा
अवनीश                           अपर्णा
अशोक                             अशोकसुन्दरी        
अनन्त                              आरती
अश्विन                              आशा               
अरुण                               अखिला
अंजनेय                             ओजस्वी
अजय                                आद्या 
आनन्द                              आनंदितता
आकाश                             आनन्दी
अनुराग
अभिनव
आशिष
अभय
अक्षय

           इ, ई

ईश्व                                     इला
इसित                                  इन्दु

            उ ,ऊ

उमापति                               उषा
उमेश।                                 उष्मीय
उमराऊ                               उर्मिला
उमाकान्त                             उर्वशी
उज्जवल                              उपासना
उदय                                    उदुली
उरवा                                   उज्वला
उदित नारायण
उमंग
ऊदित 

                 ऋ

ऋषि                                    ऋतु
ऋतेश                                  ऋतिका         
ऋषिकेश  
ऋषभदेव                             ऋतुपर्णा

              ए ,ऐ

एतवार                                  एकता


           क नामाक्षर

कमल                                    कमला
कमलापति                             कला
कन्हैया                                  कान्ति
कान्ता                                   कलावती
कैलाश                                  कोमल
कंचन                                    कंचन
केवल                                   कशिश
केशव                                   कालिन्दी
कृष्णा                                   काब्या
कृष्णानंद                               कविता
कुनाल                                   कल्पना
कमलेश्वर                               कमलेश्वरी
कमलेश                                 कुमकुम
कालदेव                                करुणा
कॅरोना                                  कैवल्या
                                           कनिका


          ख नामाक्षर

खजान                             खिल्पा                          
खेमचन्द                           खष्ठी         
खेमराज
खीमा
खुशाल

         ग नामाक्षर 

गणेश                                       गीता
गोपाल                                     गीतांजलि
गोवर्धन                                    गरिमा
गोविन्द                                     गोदावरी
गजेंद्र                                       गोमती
गगन                                        गायत्री
गदाधर                                     गुँजन
गिरधर                                     गंगा
गिरधारी                                   गुड्डी

           घ नामाक्षर

घनानंद
घनश्याम

            च नामाक्षर

चन्दन                                     चाँदनी
चम्पक                                    चम्पा
चक्रधर                                   चित्रलेखा
चूड़ामणि                                 चैती
चंचल                                     चारु
चम्पक                                    चित्रा
चितरंजन                                चेतना
चिराग
चेतन

             छ नामाक्षर

छत्रपति                                      छाया

            ट नामाक्षर

टोडर                                      टिया
टोड़ा                                       टिंकल 
टिका                                      ट्विंकल

         ड नामाक्षर

डिगर                                      डिम्पल
डोलदेव                                   डिम्पी   
डमरू                                       डॉली

        ज नामाक्षर

जगदीश                                 जशोदा
जनार्दन                                  जानकी
जगत                                     जीवन्ति
जगपाल                                  जिया
जगमोहन                                जान्हवी
जगजीवन                               जोत्शना
जितेंद्र                                     जया
जिग्नेश                                  जयश्री
जयनारायण                            ज्योति
जयेश
जगजीत

        त नामाक्षर

तन्मय                                     तुलसी
तारकेश                                   तान्या
तुलाराम                                  तपस्या
तुकाराम                                  तापसी
तोताराम
तरुण
तरसेम
तुषार
तारा

           थ  नामाक्षर

धनञ्जय                                   धान्या
धनपति
धीरज                                        धना
धनपाल
धनपत
धुरंधर                                        धुरंध्री

           द नामाक्षर

दिनेश                                        देवकी
देवकीनंदन                                 दया
देवानंद                                      दमयंती
देवराज                                      दिव्या
दानिश                                       दुलारी
दयानन्द                                      दरम्या
दीपक                                        दिपांशु
देवेंद्र                                          दीया
दिलवर                                        
दीपांशु                                       दीक्षा
दामोदर                                      दिशा
दरवान                                       दीपाली
दीपांकर
दीपान्शु
देवेन्दर
दक्ष

             ध नामाक्षर

धर्मेन्द्र                                    धना
धनपति                                  धनुली
धनपाल                                  धरा
धर्मा                                       धुर्वि
धीरज                                     धुपिता
धनेश                                      धुरंध्री
धनञ्जय                                  धृत्री
धीरेन्द्र                                      धैर्या
  

          न नामाक्षर

नरोत्तम                                 नंदिता
नरेश                                     नन्दनी
नागेंद्र                                    नन्दी
नरपति                                  नीमा
नीरज                                   नीलिमा
नीकुर                                   नताशा
निलज                                  नव्या
नवीन                                   नीरजा
निलय                                  निकिता
नटवर                                  निवेदिता
नितिन                                 नेहा
निमिश                                 निहारिका
                                          नीलम

       प नामाक्षर

पवन                                   पार्वती
पंकज                                 पाविका
पवित                                  प्रांशु
प्रकाश                                पुष्पा
प्रांशु                                   पूर्णिमा
प्रणव                                  प्रतिमा
प्रह्लाद                                 प्रियंका
प्रताप                                  पुजा
प्रेम                                     प्रिया
पीयूष                                  पद्धमावती
प्रथम                                   प्रियंगी
प्रद्योत                                  पिंकी
प्रधुम्न                                  पल्लवी
प्रह्लाद                                 पूर्णावती
परीक्षित 
पार्थ
प्रियांश 
पूर्णेन्दु
परमेश्वर
परमेस 
प्रतिक 

         फ नामाक्षर

फतेह                                    फाल्गुनी

        ब नामाक्षर

बंसी                                       बसंती
बबलू
बच्चन
बच्ची

        भ नामाक्षर

भगत                                   भारती
भरत                                    भूमि 
भुवनेश्वर                               भुविका
भुवन                                    भावना
भूपाल                                  भव्या
भूवनेश                                 भगवति
भुपेश                                   भवानि
भैरव  
भाविन
भावेश
         

         म नामाक्षर

महेश                                  मंजु
मनीष                                 मीनाक्षी
मातवर                                मीना
मीत                                    माला
महिपाल                              मिताली
महेश्वर                                 माहेश्वरी
माधव                                  मृड़ालिनी
मयूरेश्वर                               मान्द्री
मयूर                                    मनीषा
मौरेश्वर                                 ममता
मनोज                                  मोहिनी
मुकुन्द                                  मेघा
महीधर                                 मल्लिका
मोहित                                  मयूरी
मनोहर
मनदेव
महादेव
माधवानंद    

           य नामाक्षर

युवराज                                 यशोदा
यशवंत                                  याशिका
योगेश्वर                                  यमुना
योगेश                                    यामिनी
यश
यांश
राहुल
यशश्वी

       र नामाक्षर

राम                                          रमा
रमेश                                        राशी
रत्नेश्वर                                     रश्मि
रत्नेश                                       रोशनी
रामपति                                    राशिका
रोशन                                       रुपिका
रामनारायण                              राधा
रजनीश                                    रुक्मिणी
रूपेश                                       रेनु
रूपनारायण                              रेणुका
रुद्रांश                                      रोहिणी
राजेश                                      रेशमा
रनजीत                                    रेहन्ति
राघव                                       दृष्टि
रंगनाथन                                   रूपाली
रंजन                                        रुषाली
                                               राजश्री
रवि                                          रोली 
रुपनाथ                                     रूपा
रूपनारायण                               रीना

             ल नामाक्षर

लक्ष्मण                                     लक्ष्मी
लोकेश                                     ललीता
लक्ष्य                                        लाजवन्ती
लीलाधर                                   लक्षिता 
लक्षित                                      लावणी 
                                               लावण्या

           व नामाक्षर

विनोद                                      वैजयंती
विवेक                                      विजया
विकाश                                     विमला
विनय                                      विध्याश्री
विद्यापति                                  विनीता
विनायक                                   वैधृति
विद्याचरण
विशाल
विशारद
वेद
वसन्त
विहान
विश्वकर्मा
वैभव

        स श ष नामाक्षर

संतोष                                        शान्ति
शांताराम                                    शैवी
सलिल                                       सना
संजय                                        सरस्वती
शैलेश                                        संजीता 
सचिन                                       सारिका
सचिन्द्र                                      सरिता 
सत्या                                         शुहानी
सोहम                                        सीता
शिव                                          शैलजा 
शुभम                                        सोनाली
सुभाष                                       सुचिता   
श्लोक                                        सपना
सागर                                        सुनीता          
शिवसेन                                     साक्षी
शिखर                                       शिखा           
शान्तनु                                      शिया
                                               संजना                                                                         सुरभि                                                                         संगीता  
                                               सारिका 
                                               सुहानी
                                               सृष्टि
                                               स्वाती

          ह नामाक्षर

हरीश                                       हर्षाली
हरिनारायण                               हंसी
हरेन्द्र                                        हरिप्रया
हर्षित                                       हर्षिता
हर्ष                                          हिमानी
हेमंत
हरीहर
हरिवंश
हेमराज

              क्ष नामाक्षर

क्षितिज                                   
क्षयित

              त्र नामाक्षर

                
त्रिलोक                                    त्रिशा
त्रिलोकी                                   त्रिशाला 
त्रिलोकनाथ                               त्रिता
त्रिवेन्द्र



रूपक
रूपेश
रूपनारायण
रूद्र
रूप 




शनि की साडेसाती तथा शनि कि ढैया सन 2024

 शनि की साढेसाती--२०२४

शनिदेव नित्य कल्याण मंगल करने वाले देवता , न्याय प्रिय देवता है । इस बार वर्ष पर्यंत शनिदेव कुंभ राशि पर रहेंगे । 

अतः मकर ,कुंभ तथा मीन राशि वालों के लिए शनि की साढे साती का प्रभाव रहेगा । 

कर्क ,वृश्चिक राशि वालों के लिए शनि की ढैया चलेगी ।

शनि की साढेसाती मीन राशि वालों के लिए सिर पर रहने से कार्यो में देरी,अपव्यय ,अच्छे अवसर की हानि, स्वास्थ्य कमजोर होगा ।

कुंभ राशि वालों के लिए हृदय पर रहने से स्वास्थ्य में उतार चढ़ाव ,आलस्य ,अरुचि ,पत्नी कष्ट , व्यापार में मंदी रहेगी।

मकर राशि वालों के लिए पैर पर माता पिता को कष्ट ,राज पक्ष प्रतिकूल रहेगा ।

बचाव के उपाय--

जिस राशि वालों पर शनि की ढैया साडेसाती चल रही है । उन्हें सुंदरकांड रामायण तथा हनुमान चालीसा का नित्य पाठ शनि चालीसा का पाठ शनिवार का व्रत करना चाहिए । शनिवार को प्रातः पीपल वृक्ष में जलदान तथा सायं दीपदान करना चाहिए।

काले घोड़े की नाल की अंगूठी शनिवार को मध्यमा उंगली में धारण करना चाहिए।

शनिवार का व्रत तथा शनि का २३०० सौ जप कर होम, दान करना चाहिए।

      ।।जय शनिदेव।।

।।सबका कल्याण करना।।

मंगलवार, 20 फ़रवरी 2024

महाभारत युद्ध में सौ कौरव पुत्र ही क्यों मरे।

क्या आप जानते हैं महाभारत युद्ध का एक मूल कारण क्या है।

जब महाभारत युद्ध समाप्त हो गया था, तब पांडव सांत्वना देने के लिए राजा धृतराष्ट्र के पास गए ।


शोकाकुल राजा धृतराष्ट्र को भगवान कृष्ण व पांडवों के द्वारा सांत्वना देते समय राजा धृतराष्ट्र ने पूछा कि मेरे ही सौ पुत्र युद्ध में मारे गए , किंतु पांडु के पुत्र अभी भी जीवित है।

इसका कारण क्या है।

भगवान श्रीकृष्ण ने धृतराष्ट्र से कहा कि महाराज आप अपने पूर्व जीवन वृतांत को देखें जिससे आपको विदित होगा, कि आपके सौ पुत्र क्यों मारे गए ,और इनका कारण क्या था ।

राजा धृतराष्ट्र ने आंखें बंद की और अपने पूर्व जीवन के वृतांत को देखा तो पाया कि उनके जीवन में वह सो बार जिंदा हुए और सौ बार मृत्यु को प्राप्त हुए। सो बार राजा बने । अभी धृतराष्ट्र एक सो एक वे राजा के रूप में विराजमान है । जब कारण पता नही चला तो राजा धृतराष्ट्र ने भगवान वासुदेव से राजा ने कहा कि सारे जीवन काल अच्छे सुख पूर्वक यापन हुए पर इस जन्म मे शोक का कारण क्या है ।

कथा --

जब धृतराष्ट्र पहली बार राजा थे, तो उन्हें शिकार खेलने का बहुत शौक था। राजा शिकार खेलने प्रतिदिन जंगल जाते और शिकार करके जब घर आते थे । घर आने के बाद मांस का भोजन करते थे।

राजा के पास दो हंसों का जोड़ा था जिसे वे अपने प्राणों से भी ज्यादा प्यार करते थे ।

            एक बार हंसो ने सौ बच्चे पैदा हुए । और राजा शिकार करके जब घर पर आए तो खाना बनाने वाले भंडारी ने उन्हें रोज एक हंस को मारकर मांस को परोसा और राजा को वह मांस बहुत अच्छा लगा ,

 राजा ने उस मांस का सौ दिन तक भक्षण किया , और एक सौ एकवे दिन जब वह मांस नहीं मिला, तो राजा ने भोजन बनाने वाले से पूछा आपने जो आज तक मुझे मांस खिलाया वह आज क्यों नहीं है , तो खाना बनाने वाले भंडारी ने कहा कि महाराज हंसो ने सौ पुत्र जन्में थे, जो आप खा गए हैं। और अगली बार जब वह बच्चे पैदा करेंगे, तो फिर हम आपको मांस परोस पाएंगे ,राजा को बहुत ग्लानि हुई ।
राजा दौड़कर हंसों के पास जाकर क्षमा याचना कि आप मेरे अपराध को क्षमा करें , तो हंसों को उन्होंने उन्हें श्राप दिया, कि जिस तरह आपने मेरे सौ पुत्र खाए हैं और मैं उनका वियोग आज देख रही हूं उसी प्रकार आप भी अपने सौ पुत्रों का विनाश देखोगे और उनका शौक सहना पड़ेगा ।

 यही मूल कारण है ।

यही श्राप के कारण महाभारत युद्ध में कोरवों का विनाश हुआ था।
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जय श्रीमन्नारायण,

शनिवार, 27 जनवरी 2024

ब्राह्मण में होती है अद्भुत शक्ति

ब्राह्मणों में होती है अद्भुत ताकत अगर परखना चाहते हो तो एक बार ब्राह्मण की निंदा करके देखो उसको गुस्सा दिखा कर देखो और उसके ज्ञान की निंदा करो और उसको अपने घर में बुलाकर के यह सब बोलना तो समझ में आ जाएगा कि ब्राह्मण क्या है और इसकी निंदा से हमारे विनाश के कितने सारे रास्ते खुल सकते हैं और जब तक यह नहीं करोगे तब तक आपको अनुभव नहीं होगा ।

बीमारी होने पर ही बीमारी के दर्द का अनुभव होता है। और उसका इलाज कर पाते हैं ।

इसी प्रकार ब्राह्मण इतना शांत है इतना शांत रहता है कि जब तक उसको चिंगारी नहीं लगाओगे तब तक उसके अंदर की शक्तियों का पता नहीं चलेगा ।

  ब्राह्मण क्या है कैसा है क्या कर सकता है क्या नहीं कर सकता। जब तक उसको पहचानोगे नहीं तब तक आपको अनुभव नहीं होगा कहते हैं।

" ब्राह्मण की यारी , शेर की सवारी बराबर होती है"

ब्राह्मण ब्रह्म ज्ञानी हो ,या अनपढ़, ब्राह्मण होता है। उसके अंदर भगवान की दैविक शक्तियों होती है। ब्राह्मण कुल परंपरा से भी उन शक्तियों को प्राप्त करता है, जो उनके पूर्वजों में होती है और कुछ ब्राह्मण शक्तियों को अपने से अर्जित करता है और उन्हें तक वही शक्तियां उसके जीवन में उसकी रक्षा करती हैं । और इन्ही शक्तियों से वह लोगों का कल्याण करता है ।

ब्राह्मण की हत्या करते हैं उन्हें चोट हो जाते हैं उन्हें ब्रह्म हत्या का दोष 21 पीढ़ी तक भोगना पड़ता है ।

एक ब्राह्मण कि निंदा से न जाने कितनी पीढ़ियां उस दर्द को भोगती है और ऐसे बीमारियां होती है जिसका पता नहीं चलता है ऐसे क्षयरोग परिवार में हो जाते हैं और  न जाने कितनी पीढ़ियां उसके दर्द को भोगते है और अपने पूर्वजों को गाली देते है। कि किसने ब्राह्मण की हत्या की किसने सताया जिसकी वजह से हमारी पीढी ,पीढ़ी गल गई और जो ब्राह्मण की निंदा करता है ब्राह्मण की मानहानि करता है ब्राह्मण का अपयश करता है उनके कुल में कभी विद्वान पैदा नहीं होते , उनके घर में कभी इस पर कोई स्वस्थ पैदा नहीं होता ,उनके घर में एक ऐसी बीमारी होती है जिसको हम बोलते हैं ज्योतिषी भाषा में क्षय रोग , ऐसे छह रोग होते हैं जो पूरे परिवार को भर पेट होने पर भी कमजोर बना देता उसकी ताकत को खत्म कर देता है ।  जैसे ~ कुष्ठरोग , टीवीरोग धातुरोग , केंसर ,पागलपन  जैसे  बहुत ऐसी  बीमारियां हो जाती है।

               मित्रों मैंने जीवन में अनुभव किया है कि कभी किसी ब्राह्मण को देखकर के उसका मन दुखाना नहीं चाहिए हो सके तो आदर भाव से प्रणाम करके आगे को निकल जाइए नहीं तो ऐसे लोगों से कभी मुंह नहीं लगना चाहिए।

क्योंकि ब्राह्मण तो ब्राह्मण है, जो ब्रह्म है तो ब्रह्म है ।

और जो ब्रह्म है तो वह कुछ भी कर सकता है उसके शरीर में इतना तेज होता है कि वह कभी-कभी हरे पेड़ को भी सुखा सकता है ।

तो इसलिए सावधान जिसको अपना हित चाहिए वह इन सब बातों पर गौर करें और जो अपना हित नहीं चाहते हैं । जिन्होंने यह सोच लिया कि हमारे लिए पैसा मान प्रतिष्ठा ही सब कुछ है वह लोग एक बार आजमा कर देख ले तो पता चल जाएगा ब्राह्मण की शक्ति क्या है ।

 ।।जय ब्राह्मण देवता जय परशुराम ।।

रविवार, 21 जनवरी 2024

मानव सभ्यता का विकास या ह्रास हो रह है

मतलब की दुनिया, मतलब का प्यार है ।

माया तू नही रही , तो सब निराधार है ।।


संसरति इति संसार:

संसार जब रंग बदल सकता है ,तो मानव भी बदल सकता है । दोनो में एक समानता है ? संसार समय समय पर खिसकता है मानव का नव नया करता है ।ये दोनो समय समय पर रंग बदलते है ।



मानव की कल्पना के आगे शायद भगवान भी सोचते होंगे मेरे बनाए नियमों का उलंघन करता है जिसके फल स्वरूप दुनिया में अशांति का माहौल बनने लगता है।



इतिहास गवाह है जब जब इस वसुंधरा पर विद्वानों का प्रादुर्भाव हुवा उन्होंने समाज को भ्रमित ही किया है या यू कह सकते अपनी रोटी सेकी और समाज को तोड़ मरोड़ कर संसार से चले गए ।सनातन सभ्यता से ही कितनी सभ्यताओं ,धर्मो, पंथों का जन्म हुआ ,उसके कारण जनक कॉन थे _? । 












सोमवार, 15 जनवरी 2024

सत्संग बड़ा या तप

एक बार की बात है विश्वामित्र व वशिष्ठ जी मे बहस हो गयी कि सत्संग बड़ा या तप,।

विश्वामित्र जी की राय थी कि मैने तप के बल से सिद्धियाँ प्राप्त की है ,अतः तप का बल बड़ा है।वशिष्ठ जी उनके तर्क से सहमत नहीं थे,उन्होने कहा सत्संग अधिक श्रेष्ठ है।

अब दोनों इस बात को सिद्ध करने के लिये ब्रह्मा जी के पास गये और अपना प्रश्न उनके आगे रखा।ब्रह्मा जी ने कहा में अभी सृष्टि के कार्य मे व्यस्त हुँ ,इस लिये आप दोनों विष्णु जी के पास जायँ वहाँ आपके शंका का समाधान होगा ।

दोनों मुनि विष्णु जी के पास गयें ,प्रश्न सुनकर भगवान विष्णु जी ने मन में विचार किया अगर तप को श्रेष्ठ कहुँ तो वशिष्ठजी जी नाराज हो जायँगे ,इस लिए विष्णु जी ने बात टालते हुये ,कह दिया में सृष्टि के पालन कार्य में लगा हुँ ,इसलिये आप दोनो शिव जी के पास जाएं ।

जब दोनों ने भगवान शिव जी को प्रश्न रखा तो शिव जी ने शेषनाग के पास भेज दिया।शेषनाग को शंका का समाधान करने को कहा,शेषनाग जी ने कहा मैने अपने सिर पर पृथ्वी का भार उठा रखा है।इसलिए कुछ देर के लिये दोनों में से कोई पृथ्वी के भर को संभाल सको तो में किंचित विश्राम करके आपके प्रश्न का समाधान कर सकूंगा।

इस बात पर तप के अहंकार में विश्वामित्र ने कहा कि पृथ्वी को आप मुझे दीजिये।जब पृथ्वी नीचे की ओर आने लगी तो शेषनाग ने कहा सम्भालिये पृथ्वी रसातल को जा रही है।

तब विश्वामित्र ने कहा में अपना सारा तपोबल देता हूँ।पृथ्वी रुक जा परन्तु पृथ्वी नही रुकी।

यह देखकर वशिष्ठ जी ने कहा में आधी घड़ी के सत्संग का बल देता हूँ, वशिष्ठ जी के इतना कहते ही पृथ्वी रुक गयी।

अब पृथ्वी को शेषनाग जी ने अपने सिर पर धारण कर लिया और दोनों को जाने के लिये कहा।

विश्वामित्र जी मे कहा हमारे प्रश्न का उत्तर हमे मिला नही।तब शेषनाग जी ने कहा फैसला तो हो गया  कि पृथ्वी जीवन का सारा तपोबल लगाने से भी स्थिर नही हुई और आधी घड़ी के सत्संग से ठहर गयी।अथार्त  सत्संग तप से बड़ा होता है।।


बिनु सतसंग विवेक न होई।

राम कृपा बिनु सुलभ न सोई।।

यानी सत्संग से ही ज्ञान की प्राप्ति होती है


एक घड़ी ,आधी घड़ी,आधी में पुनि आध।

तुलसी चर्चा राम की, हरे  कोटि  अपराध ।।

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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा

अपामार्जन विधान एवं कुशापामार्जन स्तोत्रम्

॥ अपामार्जनविधानं ॥

अपनी तथा दूसरों की रक्षा का उपाय है, उसका नाम है मार्जन या (अपामार्जन) यह वह रक्षा है,जिसके द्वारा मानव सभी दुःख से छूट जाता है और निरन्तर सुख को प्राप्त करता है ।

भगवान वराह ,नृसिंह , वामन को नमस्कार करके कुशपामार्जन स्तोत्र का पाठ करना चाहिए ,विष्णु जी के स्मरण मात्र से जगत में फैले समस्त दूषित रोग शांत होते है ।भगवान नारायण जी के शरीर से उत्पन्न कुशा के द्वारा रोग नष्ट होते है ।

विधि:-

शरीर में उत्पन्न रोग व जगत में फैलने वाली बीमारियों के समूल नाश के लिए

कुशपामार्जन स्तोत्र के पाठ से आसाध्य रोगी के रोग को ठीक किया जा सकता है, कुशा २१ गांठ बनाकर इस स्तोत्र का पाठ करते हुए रोगी को २१बार झाड़ा जय तो रोगी का रोग हरता चला जाता है ।

॥ कुशापामार्जन स्तोत्रम्॥

ॐ वराह  नरसिंहश  वामनेश  त्रिविक्रम ।

हयग्रीवेश  सर्वेश  हृषीकेश  हराशुभम ॥१॥

अपराजित    चक्राद्यैश्चर्भि    परमायुधैः । 

अखण्डितानुभावस्त्वं सर्वदुष्टहरो भव॥2॥

हरामुकस्य दुरितं  सर्व  च  कुशलं कुरु । 

मृत्युबन्धार्ति भयदं दुरिष्टस्य च यत्फलम् ॥३॥

पराभिध्यान सहितै: प्रयुक्तं चाभिचारिकम् । 

गरस्पर्शमहारोगप्रयोगं        जरया   जर ॥४॥

ॐ नमो वासुदेवाय नमः कृष्णाय खगिने खड्गिने ।

नमः पुष्करनेत्रा    केशवायादिचक्रिणे  ॥५॥ 

नमः कमल किन्जल्कपीतनिर्मलवाससे । 

महाहव रिपुस्कन्ध धृष्टचक्राय   चक्रिणे ॥६॥

 दँष्ट्रोधृत    क्षितिभूते त्रयीमूर्तिमते नमः ।

महायज्ञ वराहाय शेषभोगाङ्कशायिने ॥७॥ 

तप्तहाटक केशान्त  ज्वलत्पावक लोचन ।

वज्राधिक नख स्पर्श दिव्यसिंह नमोऽस्तु ते ॥८॥ 

कश्यपायाति ह्रस्वाय ऋग्यजु सामभूषिणे । 

तुभ्यं वामनरूपायानमते मां   नमो   नमः ॥९॥

वराहारोषदुष्टानि   सर्वपापफलानि  वै ।

मर्द मर्द महादंष्ट्र मर्द मर्द च तत्फलम् ॥१०॥ 

नारसिंह करालास्य दंत प्रांता नलोज्जवल ।

भंज भंज  निनादेन दुष्टान् पश्यार्तिनाशन ॥११॥

ऋग्यजुःसाम गर्भाभिर्वाग्भिर्वा मनरुपधृक् ।

प्रशमं सर्वदुःखानि नयत्वस्य जनार्दन ॥१२॥ 

ऐकाहिकं द्वयाहिकं च तथा त्रिदिवसं ज्वरम् । 

चातुर्थिकं तथा त्युग्रं तथैव सतनं ज्वरम् ॥ १३॥ 

दोषोत्थं संनिपातोत्यं तथैवागन्तुकं ज्वरम् । 

शमं नयाशु गोविन्द च्छिन्धि च्छिन्ध्यस्य वेदनाम् ॥१४॥

नेत्रदुःखं शिरोदुःखं दुःखं बोदरसम्भवम् । 

अनिश्वासमतिश्वासं परितापं सवेपथुम् ॥१५॥ 

गुद घ्राणाङघ्रिरोगांश्च कुष्टरोगांस्तथा क्षयम् ।

कामलादींस्तथा रोगान् प्रमेहांश्चातिदारुणान् ॥१६॥

भगन्दरातिसारांश्च मुखरोगांश्च बल्गुलीम् । 

अश्मरीं मूत्रकृच्छ्रांश्च रोगानन्यांश्च दारुणान् ॥१७॥

ये वातप्रभवा रोगा ये च पित्तसमुद्भवाः । 

कफोद्भवाश्च ये केचिद् ये चान्ये सांनिपातिकाः ॥१८॥

आगन्तुक ये रोगा लूताविस्फोटकादयः ।

ते सर्वे प्रशम यान्तु वासुदेवस्य कीर्तनात् ॥१९॥ 

विलयं यान्तु ते सर्वे विष्णोरुच्चारणेन च ।

क्षयं गच्छन्तु चाशेषास्ते चक्राभिहता हरेः ॥२०॥

अच्युतानन्तगोविन्दनामोचारणभेषजात् ।

नश्यन्ति सकला रोगाः सत्यं सत्यं वदाम्यहम् ॥२१॥

स्थावर जङ्गमं वापि कृत्रिमं चापि यद्विषम् । 

दन्तोद्भव नखभवमाकाशप्रभवं विषम् ॥२२॥ 

लूतादिप्रभवं यच्च विषमन्यत्तु दुःखदम् । 

शमं नयतु तत्सर्व वासुदेवस्य कीर्तनम् ॥२३॥ 

ग्रहान् प्रेतग्रहांश्चापि तथा वै डाकिनीग्रहान् । 

बेतालांच पिशाचांश्च गन्धर्वान् यक्षराक्षसान् ॥ २४॥ 

शकुनीपूतनाद्यांश्च तथा वैनायकान् ग्रहान् । 

मुखमण्डी  तथा  क्रूरां  रेवती  वृद्धरेवतीम् ॥२५॥ 

वृद्धिकाख्यान्ग्रहांश्चोग्रांस्तथा मातृग्रहानपि ।

बालस्य विष्णोचरितं हन्तु बालग्रहानिमान् ॥२६॥ 

वृद्धाश्च ये ग्रहाः केचिद् ये च बालग्रहाः क्कचित् । 

नसिंहस्य ते दृष्ट्या दग्धा ये चापि यौवने ॥२७॥ 

सटाकरालवदनो   नारसिंहो  महाबलः । 

ग्रहानशेषान्नि: शेषान् करोतु जगतो हितः ॥२८॥ 

नरसिंह महासिंह ज्वालामालोज्ज्वलानन । 

ग्रहानशेषान्  सर्वेश खाद खादाग्निलोचन ॥२९॥

ये रोगा ये महोत्पाता  यद्विषं ये महाग्रहाः । 

यानि च क्रूरभूतानि प्रहपीडाञ्च दारुणाः ॥३०॥ 

शस्त्रक्षतेषु ये दोषा  ज्वालागर्दभकादयः । 

तानि सर्वाणि सर्वात्मा परमात्मा जनार्दनः ॥३१॥ 

किंचिद्रुपं  समास्थाय  वासुदेवास्य नाशय । 

क्षिप्त्वा सुदर्शनं चक्र ज्वालामालातिभीषणम् ॥३२॥

सर्वदुष्टोपशमनं     कुरु      देववराच्युत ।

सुदर्शन महाज्वाल च्छिन्धि च्छिन्धि महारव ॥३३॥

सर्वदुष्टानि  रक्षांसि  क्षयं यान्तु  विभीषण । 

प्राच्या प्रतीच्यां च दिशि दक्षिणोत्तरतस्तथा ॥३४॥ 

रक्षां करोतुह सर्वात्मा  नरसिंहः  स्वगर्जितै:। 

दिवि भुज्यन्तरिक्षे च पृष्ठतः पाश्वतोऽग्रतः ॥३५॥

रक्षां  करोतु भगवान्  बहुरूपी  जनार्दनः। 

यथा विष्णुर्जगत्सर्व सदेवासुरमानुषम् ॥३६॥ 

तेन सत्येन दुष्टानि  शममस्य व्रजन्तु  वै ।

यथाविष्णौस्मृते सद्य: संक्षयं यान्ति पातकाः ॥३७॥

सत्येन तेन सकलं  दुष्टमस्य प्रशाम्यतु । 

यथा यज्ञेश्वरो विष्णुर्देवेष्वपि हि गीयते ॥३८॥

सत्येन न सकलं  यन्मयो  तथास्तु  तत् । 

शान्तिरस्तु शिवं चास्तु दुष्टमस्य प्रशाम्यतु ।।३९।। 

वासुदेवशरीरोत्थेः  कुशेनिर्णाशितं  मया । 

अपामार्जन गोविन्दो नरो नारायणस्तथा ॥ ४०॥

तथास्तु सर्वदुःखानां  प्रशमो वचनाद्धरे:। 

अपामार्जनकं शस्तं सर्वरोगादिवारणं ॥४१॥

अहं हरि: कुशा विष्णुहर्ता रोगा मया तव ।।४२ ॥

॥ इति कुशपामार्जन स्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

नोट:-

मेरे गुरुजी कमलाकान्त शुक्ल जी ने इस स्तोत्र को मुझसे कहा जब वे जीवित थे । आज उनका स्मरण होने पर मुझे इस स्तोत्र की याद आयी जी आप तक पहुंचाने की जिज्ञासा हुई । 

जय गुरुदेव

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आचार्य हरीश चंद्र लखेड़ा



ॐ जय गौरी नंदा

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